मंगलवार, 16 सितंबर 2008

हिन्दी की पुण्य तिथि

शातिर दिमाग की उपज थी हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिलवाना। हिन्दी को मृत घोषित करवाने का इस से बेहतर जरिया और हो भी नहीं सकता था - श्राद्ध पूर्व बेला में उसे मरवा दिया जाए। तिस पर तुर्रा ये इस काले दिन को हिन्दी दिवस कहा बतलाया जाए, राजभाषा दिवस नहीं। राजभाषा हिन्दी को नियोजित तरीके से एक कर्म काण्ड के तहत अबूझ, अगम्य बना दिया गया। हिन्दी के अब्बा खुसरो साहिब ने खड़ी बोली को एक नम दिया - हिन्दी, संविधान की मंशा इसे सचमुच राजभाषा बनाने की होती तो १४ सितम्बर १९४९ संविधानिक स्वीकृति के बाद हिन्दी की नियोजित तरीके से हत्या ना की गई होती, उसमे संस्कृत के जींस, जीवनखंड जबरी डाले गए। अमीर खुसरो अब्बा पर भी शक किया गया उन्हें पहला हिंदुत्व वादी बतलाने ठहराने की ना-कामयाब कोशिश की गई। बृज, अवधि, भोजपुरी, मराठी, उर्दू, हिन्दी प्रणय के फलस्वरूप पैदा हिन्दुस्तानी जुबां पर भी नाक भों सिकोड़ा गया। भाषा के सप्रदायीकरण का ये नायाब तरीक था। शुद्धता नरेशों को कथित हिन्दी परमेश्वरों को आज भी चैन नहीं है बाज़ार के डमरू और डुगडुगी पर ग्लोबी खेल दिखाती कदर डर कदम बढाती हिन्दी आप से आप फ़ैल रही है। समास से व्यास हो रही है। श्रध्पर्व मानाने वाले इसे हिन्दी का प्रेत बतलाये हैं, खुदा खैर करे

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