शुक्रवार, 20 मार्च 2009

राजनीतिक विरासत

जैसा हम बोयंगे वैसा ही काटेंगे .वरुण फिरोज़ गाँधी कुछ भी ग़लत नहीं कर रहे हैं .धूमकेतु की तरह राजनीती पे बरपा होना ही आज का चलन है.राज और बाल ठाकरो ने यही सिखाया है .आदमी आग खायेगा तो अंगारे ही हगे गा .हटे स्प्पीचेस हित हो रही हैं इसलिए उन का चलन है.राजनीती मैं आदर्श रोपने होंगे तभी वरुण मीठा बोलें गे .पहले तौलें गे फिर बोलें गे .

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