बुधवार, 1 जुलाई 2009

तेरे सामने इम्तिहान और भी हैं ......

"सितारों से आगे जहाँ और भी हैं ,तेरे सामने इम्तिहान और भी हैं "हमारा मानना है: kअक्षा १० की परीक्षा यदि समाप्त भी न की जाए तो आंकिक प्रणाली से छुटकारा दिलवाया जाए .ग्रेडिंग सिस्टम हो .पाठ्य क्रम आधारित परीक्षा पाठ्य क्रम से बाहर कुछ जानने समझने की इजाज़त नहीं देती .परीक्षा के बाद एक लेविल लग जाता है थर्ड ,सेकिंड या फस क्लास होने का .एक ग्रंथि बड़ी होने लगती है ,जो ता उम्र पीछा नहीं छोड़ती .कुछ तो शर्म से आत्म ह्त्या कर लेतें हैं ,परीक्षा प्रणाली तथा माँ -बाप दोनों इसके लियें दोषी रहतें हैं .आख़िर क्यों आप चाहतें हैं ,आपका बच्चा इम्तिहानी लाल हो ,हर परीक्षा मेंनब्बे फीसद या और भी ज्यादा अंक ले ,जबकि इस और भी ज्यादा की अब उपरी सीमा ख़तम है .यहाँ ९५-९७ फीसद वाले भी विस्वविद्यालय इस्तर पर मनमाफिक ,अपनी अभिरुचि के विषय नहीं पड़ पाते .शादी तो शादी यहाँ करियर भी अनुबंधित होतें हैं .इसलिये दोस्तों परीक्षा एक तरह की लाटरी है ,जुआ है ,लग जाए तो तीर वरना तुक्का टी -२० किरकेट सा .परीक्षा का मतलब ही है :पर -इच्छा (परीक्षा ),इसलिये दोस्त किसी शायर ने खूब कहा है :सितारों से आगे जहाँ और भी हैं ,तेरे सामने ,इम्तिहान और भी हैं .आज भी बहुत से ऐसे लोग अपनी लगन और स्व -अद्द्याय के बूते शीर्ष पर हैं हर क्षेत्र में जबकि भइया स्कूल से थर्ड और सेकिंड क्लास तक ही इनकी उड़ान रही .लेकिन दोस्तों उड़ना नहीं छोड़ा iन लोगों ने ,आप भी ना छोडें ,उडें और लगातार उडें ,परीक्षा में रख्खा क्या है ,एक भुलावा है परीक्षा .

2 टिप्‍पणियां:

निर्मला कपिला ने कहा…

सही है भाइ अब आगे बढते हैं---शुभकामनायें मगर ये वोर्द वेरिफिचतिओन का बैरियर पार करना जरा मुश्किल लगता है ट्रेफिक पोलिस की तरह हिन्दी टूल बँद करो फिर कमेन्ट पोस्त करो आदि आदि---

संगीता पुरी ने कहा…

मैने कितनी बार पाया है कि विद्यार्थी जीवन में औसत रहे बच्‍चों का कैरियर अच्‍छा बना .. जबकि विद्यार्थी जीवन में प्रतिभायुक्‍त बचचों का कैरियर बुरा रहा .. वास्‍तव में जिंदगी के इम्‍तहान में पास होना अधिक आवश्‍यक है .. समाज बेकार में इन सब बातों को तूल देता है।