शुक्रवार, 3 जुलाई 2009

आज मन हर्षित है फूली सरसों सा .

"अंदाज़ अपना आईने में देखतें हैं वो ,और ये भी देखतें हैं कोई देखता न हो "चाहे आत्म विमोह ,आत्म विमुघ्ड़ता hओ या फ़िर स्विकिया ,परकीया प्रेम .विविध रूपा है प्रेम .इसीलियें कवि दिनकर ने उर्वशी में कहा -सत्य ही रहता नहीं ये ,ध्यान ,तुम कविता ,कुसुम या कामिनी हो .इसी प्रेम का एक स्वरूप है -दो पुरुषों या फ़िर दो महिलाओं का परस्पर भौतिक प्रेम ,गे सेक्स ,ट्रांसजेंडर ,बाई -सेक्सुअल ,लेस्बियन होना दो महिलाओं का .अलबत्ता यहाँ चर्चा प्रेम के मुग्धा स्वरूप की है ,ज़ोर ज़बरजस्ती या किसी को सेक्स पीड़ित करने की ,पर पीडक होने की नहीं हैं .दिल्ली उच्च न्यायालय का गे सेक्स को (सहमती सहित परस्पर कार्नल सेक्स )को अपराधिक धारा ३७७ के दायरे से बाहर लाना ,संविधान के सर्व समावेशी स्वरूप के अनुकूल ही है ,जहाँ किसी के साथ लेंगिक व्यवहार के आधार पर पक्ष पात नहीं है ,सबको जीवन का ,सहमती से किए सेक्स का समान अधिकार है .ज़ोर ज़ब्री तो अपनी जोरू के साथ भी भली नहीं ,कहीं कहीं तो कानूनी अधिकार है ,बलात्कार है .कई मर्तबा पैदा हो चुके बच्चे का जनम के समय सेक्स कुछ और होता है ,जैसे जैसे वह योवन की दहलीज़ पर पाँव रखता है अपने को अपने से विपरीत सेक्स का मानने समझ ने लगता है ,यहाँ तक की उसे अपना सेक्स चेंज कराना पड़ता है .ऐसा व्यक्ति ट्रांस -जेंडर कहलाता है .यानी लड़के के अन्दर इस्त्रें भाव (नारी -भाव )और लड़की में पुरुषत्व मुखरित होने लगता है .जेनेटिक लोडिंग होती है इस ट्रांस -जेंडर आइदेंटिटी के लियें कसूरवार .व्यक्ति निर्दोष होता है .सम लेंगिकता जहाँ एक और अर्जित समाज मनो -व्यवहार है ,वहीं ओब्सेसन भी है ,कम्पल्सिव व्यवहार भी है ,सेक्स चयन भी है ,बहु आयामी है व्यक्ति का यों न मानस और यों मानसिकता ,एक आयामी और रिजू रेखीय नहीं है यों व्यवहार .अलबत्ता यहाँ ज़ोर जबरी की गुंजाइश नहीं है ,अभिरुचि और चयन है .व्यक्ति की अपनी योनिक निजता है .माननीय कचहरी ने इसे ही तस्दीक किया है .सिर्फ़ दी -क्रिम्नेलैज़ किया है होमो,लेस्बियन ,बैसेक्सुँल्स और ट्रांस -जेंडर आइदेंटिटी वाले लोगों को .डर यही है .बात बात पे संस्कृति के स्वनियुक्त संस्कृति कोतवाल इस धारा का रास्ता रोकेंगे .शाहबानो मामले की मानिंद .फतवे जारी हो चुकें हैं ,सरकार संभल संभल के कदम रख रही है .हो सकता है टेक ही बदल ले ,अभी तो स्वर ही बदला है ,इस्थाई और अंतरा दोनों ही न बदल दे .इसलिये सावधान .खामोश अदालत जारी है ,हुक्म संस्कृति कोतवाल का .......