रविवार, 5 जुलाई 2009

नर्चर आर नेचर ,गे हो या जय हो ?

डारविन विकासवाद की बात करतें हैं तो इसाइयत का एक तबका मानता है "इंटेलिजेंट बी -इंग "का रचियता इश्वर है .शाश्वत है ये द्वंद्व गेलिलियो से आइंस्टाइन तक .गे -समाज इसकी गिरफ्त से कैसे बचता ?अभी तो हाई कोर्ट ने धारा ३७७ के दायरे से गेस को सिर्फ़ बाहर रखने की सिफारिश की है ,बाशरते उनके बिच सहमत से सेक्स सम्बन्ध हों ,ज़ब्री नहीं .और फतवे -खोर अपने अपने बिलों से बहार निकल आए हैं .ये तब भी हुआ था :जब गेलिलियो ने कहा था :पृथ्वी सूर्य के चारों और घुमती है और सृष्टि का केन्द्र नहीं है .रक्त संचरण को भी नकारा गया .धर्म और विज्ञान का रिश्ता सदेव ही कुत्ते -बिल्ली सा रहा आया है .तमाम धर्म -खोर फ़िर मिलीभगत कर रहें हैं .क्या सिख ,क्या इसाई ,क्या हिंदू सभी जो हिन्दुस्तान का अन्न जल ग्रहण कर रहें है .ये धरती ही ऐसी है .सब को अपनी बात कहने का हक़ ज़रूर है .लेकिन सेक्सुअल आई -देन्तिटी धर्म निर्धारित करेगा .राजनितिक पीछे -पीछे चलेंगे .अजीब मुल्क है ,अपनी ही गुप्त कालीन परम्परा को बिसरा गया .यहीं पर इसी गुप्त काल में "कामसूत्र रचा गया था ,वात्सायन के हाथों .जिसमें मात्र देहिक सुख के लियें भी काम (सेक्स )की चर्चा है ,मुख मैथुन का ज़िक्र है ,किन्नरों के सन्दर्भ में .सम्लेंगिक संबंधों की चर्चा है .त्रि -टा -इज है ये काम संबंधों की ,यों न -संबंधों की .आज भारतीय संस्कृति की दुहाई देकर वो ही लोग सड़कों पर आने को आतुर हैं ,जो कल देवदासी बनाकर औरत की अस्मत से खेलते थे .गिरजाघर से लेकर देवालय तक कोई माई का लाल है जो दूध का धुला है .इस देश में वाटर फ़िल्म की शूटिंग पर विवाद होता है क्योंकि उसमें विधवाओं के यों न शोषण का कच्चा चिट्टा पेश है .किसी न किसी बहाने कभी वेलेंतैंस डे पर ,तो कभी किसी पब पर प्रेम पर और उसकी आड़ में औरत के शरीर पर हमला होता है .उद्धव कौन देश को वाशी ?किस खेत की मुली हैं ये धर्म की राम नोमी धारी लोग ,फतवा जरी करने वाले लोग ,डारविन को ग़लत बतलाने वाले लोग .मैं आज पुरी निष्ठां से सरयू तट पर इनका तर्पण करता हूँ .श्राद्ध करता हूँ .जय हो ,गे -हो .

कोई टिप्पणी नहीं: