बुधवार, 8 जुलाई 2009

जाने चले जाते हैं कहाँ ?

मन फूला फूला फिरे ,जगत में झूठा नाता रे ,जब तक जीवे माता रोवे ,बहिन रोवे ,दस मासा रे ,और तेरह दिन तक तिरिया रोवे ,फेर करे घर वासा रे -कबीर ,माली आवत देख कर ,कलियाँ करें पुकार ,फूली फूली चुन ली कल हमारी बार .एक बहुत ही अजीम्तर इंसान जिन्होंने ज़िन्दगी को फेंटेसी और फेंटेसी को ज़िन्दगी की तरह जिया ,आज हमारे बिच नहीं हैं ,इसलिए उनका जाना मात्र आलमी घटना नहीं है ,जाना तो हम सब को है ,लेकिन कुछ कर के तो जाए । .हमारे जाने के बाद कोई तो गाये -जाने चले जातें है कहाँ ,दुनिया से जाने वाले जाने चले जातें हैं कहाँ ....एमजे का जाना ,एक विरेचन था ,कथार्सिस थी ,एक साधारनी कारनtहा ,उसमें उनके बालसखा -सखियों ,कुटुम्बियों ,गोन टू sउन(जल्दी चले गये) गा कर रोपड़ने वालों में हम भी थे ,आप में से भी कई और होंगे ,आखिरी संवेगात्मक भावः यात्रा को जिन्होंने साक्षी भावः से देखा .एम् जे कितनो को जीना सिखा गये ,उनकी बल सखा ब्रुक्स शील्ड अकेली नहीं है ,उनके संग तो अनगिन लोगों ने मून वाक किया .उनकी ११ वर्षीय बेटी पेरिस जेक्सन का रुदन हम सब का था ,आँखें हमारी भी नम थी ,हम भी गा रहे थे :जाने चले जातें हैं कहाँ .कल तक रहते जो मुस्काते ,हस्ते गाते,आते जाते ,ऐसे आने जाने वाले ,जाने चले जातें है कहाँ ?लेकिन कबीर ने आकर दामनथाम लिया .न कोई रहा है न कोई रहेगा ,मन फूलाफूला फिरे जगत में झूठा नाता रे ...सोने की पालिश वाले ताबूत में उनके आंशिक शारीरिक अवशेष बकाया हैं .चेतन ऊर्जा ,जीव आत्मा तो शरीर छोड़ गई ,क्या भ्रम है ,न्यूरो -पे -था -लाजी (नर्वस सिस्टम का रोग विज्ञान ) के लिए उनका दिमाग निकाल के रख लिया गया है .दिमाग तो जीव साथ ले गया ,करते रहिये पिष्ट पेशन .मौत को तो बहाना चाहिए .माइक आज भी है ,उसके पीछे की जगह अब कोई और है .

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