सोमवार, 24 अगस्त 2009

नकार की मुद्रा में है सरकार .

भूजल का दोहन हम बेहिसाब कर रहें हैं -आख़िर एक्विफायार्स के री -चार्ज होने की भी एक सीमा होती है ,हम उसका अतिक्रमण कर चुके है ,४५ फीसद ज्यादा जल उस सीमा से हम कृषि कर्म और पेय जल में बरतरहें है फलस्वरूप उत्तर भारत के तीन राज्यों पंजाब ,हरयाणा और राजस्थान में भूजल एक फुट सालाना की रफ़्तार से हमारी पहुँच से बाहर जा रहा है ,हम दोहन कर रहें हैं इस जलराशि का .वाटर सेव्ड इज वाटर कन्ज़र्व्द
उत्तर प्रदेश की मायावी सरकार के मुताबिक ८० फीसद ज़मीन पर खेती किसानी हो रही है ,जबकि किसान कृषि रकबा २५ फीसद ही बतला रहें हैं ।।
जल प्रबंधन के प्रति कितनी लापरवाह रहीं हैं सरकारें उक्त आंकडे साक्षी हैं ।
ड्रिप -इर्रिगेशन ,ड्राई -फार्मिंग कई इलाकों में वांछित है ,इजराइल ने यह कामयाबी से कर दिखाया है .उनके सहयोग -सहकार से ,टेक्नालाजी ट्रांसफर मिशन के तहत यह काम हम भी कर सकतें हैं ।
गन्ना और चावल की खेती सघन सिंचाई मांग ती है ,जहाँ पानी का तोडा नहीं है ,परम्परा गत ढांचा है सिंचाई का वहाँ यह उगाए जाएँ ।
किसान को बिजली पानी मुफ्त क्यों ?कीमत से ही कीमत है ,किफायत है ,किफायत सारी है .
वर्षा जल की खेती सिर्फ़ खाना पूर्ति के लिए हुई है ,जबकि इसका व्यापक प्रचार -प्रसार ज़रूरी है .नगर नियोजन में इसका समावेश वक्त की मांग है ,और वक्त किसी का इंतज़ार नहीं करता ।
चेक डेम्स की बात करते सुनते एक ज़माना बीत गया -विज्ञान लेखन में इसका गत दशकों में बारहा ज़िक्र हुआ ,लेकिन हुआ क्या -वही धाख के तीन पांत .बड़े बाँध कब का ज़वाब दे चुके हैं .सिल्ट से लबालब हैं ।
पहले समस्या का रेखांकन तो हो -सरकार नकार की मुद्रा में हैं .ऊपर वाला आकर कुछ ठीक वीक नहीं करेगा ,एक जन आन्दोलन ज़रूरी है .

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