गुरुवार, 10 सितंबर 2009

फेफडे में गहरे उतर कर सेल्स -को -इन्फेक्ट करता है -एच १ एन १ ...

पहले विश्व -स्वास्थय संगठन औ अब ब्रितानी विज्ञानियों ने एच १ एन १ इन्फ़्लुएन्ज़ा -ऐ वाय-रस पर किए अध्धय्यनों से पता लगाया है -एच १ एन १ इन्फ़्लुएन्ज़ा -ऐ वाय -रस फेफडों में गहरे उतर कोशिकाओं को संक्रमित करता है .इम्पीरिअल कोलिज लन्दन के शोध -कर्मियों ने योरोप औ अमरीका से एच १ एन १ प्राप्त किया ।
इन्फ़्लुएन्ज़ा वाय -रस कोशिका के बाहरी हिस्से पर मौजूद मोती जैसे अणुओं से बंध बनाता है ,चस्पां हो जाता है .इन्हें अभिग्राही (रिसेप्टर्स )कहा जाता है .वाय -रस एक विशिष्ठ रिसेप्टर की तलाश में रहता है ,तलाश पूरी ना होने पर यह कोशिका के अंदर दाखिल नहीं हो सकता ।
लेकिन एक बार सेल में प्रेवश पा जाने पर यह तेजी से अपनी प्रतिलिपि तैयार करने लगता है ,रेप्लीकेट करता है .एक विस्फोट (बर्स्ट)में यह बाहर आकर अन्य कोशिकाओं को संक्रमित करने लगता है .औ इस प्रकार संक्रमण फेलने लगता है ।
सीजनल फ्लू से अंतर :मौसमी इन्फ़्लुएन्ज़ा का वाय -रस नाक ,कंठ ,उपरी एअर -वे में मौजूद अभिग्राहियों से अटेच होकर उपरी श्वसन क्षेत्र (अपर -रिस्पाय -रेत्री ट्रेक्ट ) को ही संक्रमित कर पाता है ,जबकि विश्वमारी (पेंदेमिक )बनते स्वां -इन फ्लू का वाय -रस एच १ एन १ इन्फ़्लुएन्ज़ा -ऐ फेफडों में गहरे उतर वहाँ मौजूद रिसेप्टर्स से अटेच हो जाता है .इसीलिए यह ज्यादा खतरनाक संक्रमण -वाय -रल न्युमोनिया की वजह बनता है ।
यही वजह है -एच १ एन १ स्ट्रेन से संक्रमित व्यक्ति में फ्लू के लक्ष्ण अति उग्र हो जातें हैं .लापरवाही की गुंजाइश ही नहीं होती खासकर जब पहले से ही कोई रोग मौजूद हो ।
फेफडों के (एक या दोनों फेफडों के )संक्रमण को न्युमोनिया कहा जाता है .मौसमी इन्फ़्लुएन्ज़ा में इस संक्रमण की वजह एक जीवाणु बनता है ,जो इतना खतरनाक नहीं होता .जबकि एच १ एन १ इन्फ़्लुएन्ज़ा -ऐ से पैदा न्युमोनिया खतरनाक साबित होता है ,लापरवाही बरतने पर जान लेवा भी .इसीलिए नौनिहालों औ बुजुर्गों के लिए इसके खतरे ज्यादा हैं ।
सन्दर्भ सामिग्री :वाय-रस इन्फेक्ट्स सेल्स इन लंग्स :स्टडी (टाइम्स आफ इंडिया ,सितम्बर १० ,२००९ ,पृष्ठ ११ ।)
प्रस्तुती :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

1 टिप्पणी:

Alpana Verma ने कहा…

H1N1 ke baare mein Hindi mein di gayi yah jaankari achchee hai.
shukriya.