रविवार, 6 सितंबर 2009

उडीसा में नै उम्मीद -प्रसूताओं ,नौनिहालों के लियें ?

प्रसव के दौरान होने वाली मातृत्व दर राष्ट्रीय स्तर पर एक लाख प्रसव मामलों के पीछे ३०१ है .जबकि उडीसा में ३५४ है ।
दुनिया भर में पैदा होने वाले बच्चों में से हर पांचवा बच्चा भारतीय होता है .लेकिन दुनिया भर में मरने वाले शिशुओं में २५ फीसद शिशु भारतीय होतें हैं ।
नेशनल रुरल हेल्थ मिशन के तहत होने वाले जच्चा -बच्चा फायदे -लाभ ,योजना ,जननी सुरक्षा योजना के तहत सरकारी अस्पतालों में प्रसव सुविधा के संग प्रति प्रसूता १४०० रूपये की सरकारी सहायता से ग्रामीण तबका वाकिफ नहीं है ।
ऐसे में कवि हुक्का की पंक्तियाँ बड़ी मौजूं हैं -बापू तुम्हारे डंडे की कसम ,समाजवाद को घसीट घसीट कर ला रहें हैं ,और ,तुम्हारे लंगोट की कसम माल ख़ुद खा रहें हैं ।
स्वास्थय और आर्थिक लाभ तो दूर प्रसूताओं को अस्पताल में बेड के लिए भी परसाद चढाना (रिश्वत )पड़ रहा है ।
यही है नरेगा और राष्ट्रीय स्वास्थय योजना की ज़मीनी हकीकत ।
इसीलिए उडीसा में गैर सरकारी संगठनों द्वारा चलाई जा रही मुहीम स्वागतेय है ।
ज़मीन पर बच्चे पैदा हो रहें हैं उडीसा के सरकारी अस्पतालों में -उडिया चेनल की एक खबर ।
यहाँ १००० लाइव बर्थ के पीछे ६५ बच्चे ऐसी वजहों से काल कवलित हो रहें हैं .जबकि राष्ट्रीय औसत ऐसे बच्चों का महज ५५ है ।
२००८ में डिलीवर नाओ केम्पेन की दोगैर - सरकारी संगठनों द्वारा की गई पहल उडीसा के सन्दर्भ में बेहद सार्थक सिद्ध हो रही है ।
इनके नाम हैं :पार्टनर -शिप फार मेतार्नल न्यू -बार्न एंड चाइल्ड केयर (पी .एम् .एन .सी .एच .)तथा व्हाइट रिबन अलांज़ आफ इंडिया (डब्लू .आर .ऐ .आई .).सेफ मदर डे पर इन दोनों संगठनों ने जो पहल की अब परवान चढ़ रही है .इनका मकसद है -अवेअर -नेस ,एक्सेस ,एकौंतेबिलिती ।
ऐसी ही मुहीम ये दोनों संगठन अब पश्चिमी बंगाल में शुरू करने के इरादे रखते है .स्वागत ,बधाई -ब्लॉग जगत की ।
प्रस्तुती :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )
सन्दर्भ सामिग्री :मम्स दी होप्फुल वर्ड इन उडीसा (टाइम्स आफ इंडिया ,सितम्बर ६ ,२००९ पेज १६ .)

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