शुक्रवार, 18 सितंबर 2009

दादी माँ एक बार फ़िर देखने लगीं हैं .

मिआमी विश्व -विद्द्यालय बस्कोम पाल्मर आई इंस्टिट्यूट के आई -सर्जन विक्टर पेरेज़ नेएक साठवर्षीय महिला को एक बार फ़िर बीनाई (दृष्टि )मुहैया करवाई है जिसकी बीनाई एक बिरले रोग स्टीवंस -जॉन्सन सिंड्रोम ने छीन ली थी उक्त बीमारी से ग्रस्त होने पर महिला की कार्निया पूरी तरह नस्ट हो गई थी ,लिहाजा २००० में इस रोग के हमले के बाद से ही यह महिला दृष्टि -हीना थी .इस महिला का नाम है -थोर्न्तों .नेत्र -शल्य -विद विक्टर ने पहले इस महिला का केनाइन टूथ उखाडा (इसे आई टूथ भी कहा जाता है ,यह मोलर औ इन्सैज़र टीथ के बीच नुकीले दांतों में से एक होता है )इसके गिर्द की अस्थि को भी एक्सट्रेक्ट किया गया ,इसे तराश कर अब एक खांचा बनाया गया जिसमे कृत्रिम लेंस फिट किया जा सके .(यह एक ओप्टिकल सिलिंडर नुमा लेंस था ,जिसे पहले खांचे समेत थ्रोंतों की गालों या कंधों की चमडी के नीचे दो माह तक प्रत्यारोपित किया गया ताकि दांत का खांचा औ लेंस परस्पर बोंड बना सकें ,एक हो सकें .इसके बाद कई किश्तों में एक साकेट आँख के बीचों बीच तैयार कर उसमे लेंस को जचाया गया .आख़िर कार इसे थोरोंतों के शरीर से स्वीकृति मिल ही गई औ एक बार फ़िर उन्हें दिखलाई देने लगा ,आस -पास के चेहरों को उन्होंने पट्टी खोलने के दो घंटों बाद ही पहचान लिया औ एक सप्ताह बाद अखबार भी बांचने लगीं ।
अलबत्ता इस एवज मुकोसा में एक सूराख प्रोस्थेटिक लेंस (क्रत्रिम लेंस )को फिट करने के लिए भी बनाया गया .अब आँख अपने स्थान पर है ,लेंस बाहर की औ बस थोडा सा झलकता है ।
यह नायाब तरीका इटली में विकसित किया गया था जिसे अमरीका में पहली मर्तबा काम याबी के साथ आजमाया गया है ।
सन्दर्भ सामिग्री :-टूथ इम्प्लान्तिद इन आई हेल्प्स ग्रेनी सी अगेन (टाइम्स आफ इंडिया ,सितम्बर १८ ,२००९ ,पृष्ठ २१ )
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

1 टिप्पणी:

उन्मुक्त ने कहा…

इस चिट्ठे में ज्ञानवर्धक सूचना है। मुझे कई बातों के बारे में नहीं मालुम था।

कृपया वर्ड वेरीफिकेशन हटा लें। यह न केवल मेरी उम्र के लोगों को तंग करता है पर लोगों को टिप्पणी करने से भी हतोत्साहित करता है। आप चाहें तो इसकी जगह कमेंट मॉडरेशन का विकल्प ले लें।