रविवार, 20 सितंबर 2009

यह सब क्या हो रहा है ?पहली किस्त ........

लोग सरे आम आतें हैं ,भारतीय समाज व्यवस्था को ,भारत -धर्मी समाज को सेंध लगाकर चले जातें हैं ,और हम हैं की उफ़ तक नहीं करते ?(गज़ब है सच को सच कहते नहीं हैं ,हमारे होंसले पोले हुए हैं ,हमारा कद सिमट कर घटगया है ,हमारे पैरहन झोले हुए हैं ,सियासत के कई ,चोले हुए हैं ."
बिंदास बोल -खुलकर बता जो महसूस करता है -अमूर्त प्रजा तंत्र (भारतीय आधुनिक प्रजातंत्र )इतना सहमा -सहामा क्यों हैं ।
अब कल की ही बात है -मौका था -एनूअल पीस दे -स्थान था -इंडिया हाबितात सेंटर -वक्ता थें /थीं -मिस्टर नौलखखा(नव्लाख्खा सन्सएंड दौतारस,बेटे -बेटियाँ )-पेनालिस्ट का नाम बताने के लिए नौलखखा काफ़ी हैं -सभी एक ही थाली के चट्टे-बट्टे थे (बेंगन वोट बेंक है ),इसलिए सभी का नाम लेना कोई मायने नहीं रखता -एक मंतव्य सुनकर लगा -भारत में प्रतिरक्षा सेवाओं का एक ही काम है -औरतों से बलात्कार करना .दूसरे वक्ता का मूल स्वर था -"अब सुप्रीम कोर्ट फैसला करेगा -कौन सा इंधन भारत में स्तेमाल किया जाए "एक सुविख्यात नामचीन ,नामवर एक्टिविस्ट ने बतलाया -लोग आजिज़ आकर माओ -ईस्ट बनतें हैं(भारत ने क्या चीन की भैंस खोलकर बेच दी है जो चीन अरुणाचल में दलाई लामा के पैर रखने को रक्त -रंगियों के लिए ख़तरा बतला रहा है .)ये सारे पेनालिस्ट हमें लाल चीन की हिमायत करते दिखे -प्रकाश -करात के माँ -बाप लगे (तल्खी के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ ।
"सिर्फ़ हंगामा खडा करना मेरा मकसद नहीं ,लेकिन ये सूरत बदलनी चाहिए ,अब तो इस तालाब का पानी बदल दो ,सब कमल के फूल मुझाने लगें हैं ".जब सियासत एक ढकोसला बन जाती है -तब अपेक्स -कोर्ट को सुओ -मोटो कदम उठाना पड़ता है -यह ओबामा नहीं प्यारे -कभी ना मुस्कराने वाली सोनिया का प्रजा तंत्र है -इसीलिए सब गफलत में हैं .मुखोटा तो असली चेहरा नहीं होता -मन मोहन क्या अकेला भार झोकेंगा ?सिर्फ़ मनमोहन होने से क्या होता है .

1 टिप्पणी:

Ravi Prakash ने कहा…

विचारात्मक लेख!

-रवि प्रकाश

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