गुरुवार, 1 अक्तूबर 2009

उतना फर्क नहीं है अपूर्व -बुद्धि या मनोरोगी होने में ....

कह देतें हैं ना ,हर आदमी थोडा बहुत झखखी,सनकी होता है ,सनक गया है ,जबकि कुछ लोग बाकायदा गभीर अवसाद यहाँ तक की दिवास्तेतिंग (व्यक्तित्व को एकदमसे मानसिक रूप से पंगु बना डालने वाले मानसिक रोग )शिजोफ्रेनिया या फ़िर बाई -पोलर इलनेस से सच मुच ग्रस्त होतें हैं .,जबकि कई अतिरिक्त रूप से प्रतिभा शाली .क्या वास्तव में देमेंशिया से ग्रस्त और प्रतिभावान व्यक्ति में जींस की दृष्टि से (खानदानी प्रदाय जीवन इकाइयों की दृष्टि से )बहुत ज्यादा फर्क होता है .विज्ञान इन गूढ़ सवालों के ज़वाब देने लगा है ।
हर प्रतिभाशाली व्यक्ति में थोडा बहुत पागलपन (क्षमा करें यह प्रयोग से बाहर वर्जित शब्द प्रयोग है )होता ही है .जहाँ तक आनुवंशिक विज्ञान का सवाल है ,दोनों में एक जीवन खंड (जीन )यकसां है ।
न्युरेगुलिन १ नाम है उस जीन का जो बहुत ज्यादा क्रिएटिव लोगों में पाया जाता है .इनकी रचनात्मकता शिखर पर होती है .दरअसल दिमाग के विकास में यह जीवन ईकाई एक एहम भूमिका निभाती है .जबकि गंभीर मानसिक रोगों के लिए भी इसे और इसीके एक और संगी साथी (वेरिएंट फॉर्म )को जिम्मेवार ठहराया जा रहा है -जी हाँ ,यही खानदानी घोडा (जीन )शिजोफ्रेनिया और बाईपोलर इलनेस के लिए भी कुसूरवार पाया गया है ।
सेम्मेल्वेईस यूनिवर्सिटी हंगरी के चोटी के विज्ञानी स्ज़बोल्क्स कहतें हैं -पहली मर्तबा इस तथ्य का खुलासा हो रहा है ,एक ऐसा जेनेटिक वेरिएंट जीन जिसका सम्बन्ध साइकोसिस (गंभीर मानसिक रोग से रहा है ) कुछ अच्छे काम का भी है ।
उन्ही के शब्दों में -"मोलिक्यूलर फेक्टर्स देत आर लूज्ली एसोसिएतिद विद सेवेरल मेंटल दिसोर्दर्स बट आर प्रिजेंट इन मेनी हेल्दी पीपुल में हेव एन एडवांटेज इनेबलिंग अस तू थिंक मोर क्रिएटिवली "यानी कुछ ऐसे आण्विक घटक जिनका सम्बन्ध मानसिक विकारों से जोड़ा जाता रहा है वह कितने ही हृष्ट पुष्ट स्वस्थ लोगों में भी होतें हैं और और उन्हें और भी रचनात्मक बना देतें हैं ।
अपने अध्धय्यन में इन शोधकर्ताओं और विज्ञानियों ने उन स्वयं सेवियों को शरीक किया जिन्हें प्रतिभा के दम पर बहुत कुछ हासिल था ,जो अतिरिक्त रूप से रचनात्मक थे ।
इनसे बड़े ही अजीबो गरीब असामान्य वेरी अन्युस्युअल सवाल पूछे गए -एक सवाल की बानगी देखिये -"जस्ट सपोज़ क्लाउड्स हेड स्ट्रिंग्स अटेच्ड तू देम व्हिच हेंग डाउन तू अर्थ .वाट वुड हेपन ?"
मूल्यांकन का आधार ज़वाब के बुनियादी ओरिजनल ,अभिनव होने को बनाया गया .अलावा इनकी जीवन भर की उपलब्धि का ब्योरा भी दर्ज किया गया ,वह भी सवाल ज़वाब के रूप में ।
पता चला न्युरेगुलिन १ के मौजूद होने और इनकी रचनात्मकता में एक अन्तर सम्बन्ध है ,लेकिन जिनमे इसका भी वेरिएंट जीन मौजूद था उनकी रचनात्मकता और भी बढ़चढ़ कर थी .अध्धय्यन साइकोलोजिकल साइंस जर्नल में प्रकाशित हुआ है ।
सन्दर्भ सामिग्री :-ओनली ऐ फाइन लाइन बिटवीन जिनिअस एंड मेडनेस (टाइम्स आफ इंडिया ,अक्टूबर १ ,२००९ .पृष्ठ १९ )
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

कोई टिप्पणी नहीं: