शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2009

अपनी ही संतानों को मनोरोग थामा सकती हैं धूम्र -पानी प्रसुताएं ...

"स्मोकिंग मोम्स रिस्क साइकोटिक किड्स "यही शीर्षक है टाइम्स आफ इंडिया ,अक्टूबर २ ,२००९ की एक ख़बर का .हमें लगा शीर्षक के साथ छेड़ छाड़ की तो वजन कम हो जाएगा इस बड़ी ख़बर का .फ़िर ससुरी अंग्रेज़ी आती भी जल्दी समझ में है ,फिरंगी हर चीज़ के दीवाने हैं हम लोग ।
बहरहाल ख़बर पर लौट्तें हैं ।
कमसे कम चार ब्रितानी विश्व -विद्यालयों ने निष्कर्ष निकाले है निरंतर शोध अध्धय्यन के बाद -जो भावी माताएं (गर्भवती महिलाएं )गर्भावस्था (जेस्तेशन पीरियड ऑफ़ ४० वीक्स )के दौरान धूम्र -पान करतीं हैं ,उनकी संतानें किशोरावस्था की दहलीज़ पर पाँव रखते ही मनो -रोगों की चपेट में आ सकतीं हैं .आप के शौक का खामियाजा भला आप की सन्ततियां क्यों उठाएं ?ज़रा सोचिये -करे कोई पिटे कोई ,करे मुल्ला पिटे जुम्मा ,कहाँ का न्याय है ये ,साहिबा ?
शोध छात्रों ने नतीजे निकालें हैं -कमसे कम २० फीसद किशोर -किशोरियों में साइकोटिक सिम्टम्स(गंभीर मनोरोगों के लक्ष्ण )नहीं प्रगटहोते यदि इनकी माताएं धूम्र -पान की लत गर्भावस्था के दौरान ना पाले रखतीं .

कोई टिप्पणी नहीं: