रविवार, 15 नवंबर 2009

कुदरत का नायाब नज़ारा "विंटर लाइन "क्या है ?

सूरज जब शिवालिक की पहाडियों के पीछे रात्री विश्राम के लिए चला जाता है तब दूँ घाटी से कुदरत का एक बेहतरीन नज़ारा (मौसमी अचम्भा )मसूरी की शाम को सैलानियों के लिए अक्टूबर मध्य से दिसम्बर मध्य तक बेहद खूबसूरत बना देता है ।
शाम की यही रंगत स्वित्ज़र्लेंद से भी देखी जा सकती है .यहाँ भी पश्चिमी क्षितिज रंगों की नुमाइश से सराबोर हो उठता है -पीला ,गहरा लाल ,नारंगी ,चमकीला लाल गुलाबी जामुनी रंग एक साथ मुखरित होतें हैं।
उत्तरांचल की हिल क्वीन मसूरी का माल रोडपर गश्त करता सैलानी शाम होते ही कुदरत के इस अप्रतिम अनचीन्हें नजारे को देखने के लिए सड़कों के किनारे पडी बेंचों पर आ बैठता है ।
हवा की दो विभिन्न तापमान वाली परतों को एक काल्पनिक किरमिजी गहरे लाल रंग की रेखा यहाँ अलगाए रहती है ।अस्ताचल को जाता -
सूरज एक जाली (नकली )क्षितिज के पीछे छिप जाता है ,तब पैदा होती है एक भूरी चमकीली लाल गुलाबी जामुनी रंगों की पट्टी ।
साफ़ तौर पर एक श्याम पट्टी (ब्लेक लाइन ) तब वायुमंडल की भूरी गंदली परत को अस्ताचल को जाते सूरज की गोल्डन ब्राउन और गहरे लाल (क्रिमसन रेड )परत से अलग करती दिखलाई देने लगती है .यही है -विंटर लाइन ।
ऐसा लगता है प्रकृति के किसी दिव्य चितेरे ने कूची - ब्रश संभाल लिया है ।
कुछ विज्ञानी इसे प्रकाश के अपवर्तन (रिफ्रेक्सन )की घटना बतलातें हैं ,जब प्रकाश एक ख़ास कोण पर दो अलग अलग वर्त्नांक वाली परतों में प्रवेश करने पड़ मूड जाता है ,विचलित हो जाता है रिजू मार्ग से तब पर्बतीय क्षेत्रों से पश्चिमी क्षितिज की साफ़ घाटी की तरफ़ निहारने पर कुदरत का यह मौसमी नज़ारा दिखलाई देता है ।
अलबत्ता शाम के इस आश्चर्य लोक की सृष्टि स्नो -फाल के दौरान क्यों नहीं होती और केवल सर्दी के दो महीनों में ही क्यों होती है यह अभी अनुमेय ही है ।
संभवतय सर्दी के मौसम में पैदा होने वाला तापमान कंट्रास्ट अस्ताचल को जाते सूरज की अप्वार्त्नीय रश्मियों (रिफ्रेक्तिंग रेज़ )के साथ किर्या -प्रतिक्रया (इन्तारेक्त )करता है ।
(दी क्लोजेस्ट मितीयोरोलोजिकल एक्सप्लेनेशन फॉर दिस इवनिंग वंडर वित्नेस्द फ्रॉम मसूरी एंड स्वित्ज़र्लेंद इस देत दी कंट्रास्ट इन दी टेम्प्रेचर ड्यूरिंग विंटर इन इन्तेरेक्सं- न विद दी रिफ्रेक्तिंग रेज़ ऑफ़ दी सेटिंग सन में बी दी रीज़न फॉर इट्स अक्रेंस ।)

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