मंगलवार, 29 दिसंबर 2009

झुर्रीदार चेहरा असली कुसूरवार कौन ?

केस वेस्टर्न रिजर्व स्कूल आफ मेडिसन ,क्लीव्लेंद(ओहायो ) से सम्बद्ध एल्मा बारों और साथियों ने अपने एक हालिया अध्धय्यन से पता लगाया है :धूम्र -पान की आदत और मोटापा और बेहिसाब धूप में बिताएगए पल खानदानी गुणसूत्रों से ज्यादा हमें बुढापे की मांद में ले आतें हैं .हमारे चेहरे की बेहिसाब झुर्रिया इन्हीं आदतों और पर्यावरणी घटकों (धूप में ज्यादा देर तक बने रहना )की सौगातें हैं ।
हमारे खानदानी जींस (जीवन खंड /जीवन इकाइयां )इस रूझान में भागीदार हैं भी या नहीं इसका पता लगाने के लिए अध्धय्यन ६५ जुड़वां जोड़ों पर संपन्न किया गया था ।
ज़ाहिर है जुडवाओं(ट्वीन्स)का माहौल यकसां नहीं था उनकी आदतें और परिवेश जुदा थे .बेशक उनकी खानदानी विरासत सामान थी ,जीवन इकाइयां यकसां थीं ।
पता चला झुर्रियों का सम्बन्ध हमारी जीवन शैली से ज्यादा है ,माहौल और रहनी सहनी आदतों से ज्यादा है ।
बेशक जीवन शैली को सुधार कर ,धूम्र -पान से परहेज़ और मोटापे को टाले रखकर बुढ़ाने को कुछ तो लगाम लगाईं ही जा सकती है .

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