बुधवार, 6 जनवरी 2010

जय जय जय हनुमान गुसाईं ......

राजस्थान में एक जगह है अलवर और जयपुर के बीच कहीं "मेहंदीपुर चौक ",यहाँ बालाजी का मंदिर है .शिव का ही रूप है अवतार है "बालाजी '",सनातन धर्म में अवकाश है कोई किसी भी देव की आराधना करे जिसको चाहे पूजे .कोई झगडा फसाद नहीं .मोनोलिथिक धर्म नहीं है सनातन धर्म .लेकिन यहाँ एक और लफडा है .मार्क्स ने धर्म को अफीम कहा था .हिन्दू (सनातन धर्मी )देव देवताओं के जिम्मे एक और काम सौप रहें हैं -मनोचिकित्सा का ।

बालाजी का नज़ारा देखने लायक होता है .हमने यहाँ इंसानों को जंजीरों (जेवड़ी )से बंधा देखा है .औरतों ,किशोरियों को बाल खोल कर जय जय जय हनुमान गुन्साइन के नाद पर अजीबो गरीब हरकत करते देखा है ,ठीक हिस्टीरिया के रोगी जैसी हरकत .लोक्श्रुति ,जन विश्वाश है ,यहाँ दरबार लगता है ,तारीख पड़ती है ,बालाजी के दरबार में .ज्यादा तर मामलों में (मनोरोग के )यह मान समझ लिया जाता है ,रोगी को ऊपरी असर है ,मृत माँ किशोरी को सता रही है ,बालाजी भूत भगा देतें हैं .जैसे बालाजी मंदिर ना होकर एक "मनोरोग केंद्र हो "।

एक और जगह है -देवबंद ,यहाँ देवबंदी मदरसों के अलावा मौलाना साहिब है जो पढ़ा हुआ पानी मनो रोगियों को उपचार के लिए देतें हैं ,मन्त्र ,कलमा आदि कागज़ की कतरनों पर लिखे होतें हैं जिन्हें पानी में डाले रखा जाता है .रोज़ एक चम्मच्च पानी पीने से आराम आ जाता है ,ऐसा माना समझा जाता है .हो सकता है ,इस सब का प्लेसिबो इफेक्ट पड़ता हो .पर सत्य यही है -

आज हिन्दुस्तान की ७ फीसाद आबादी किसी ना किसी मनोरोग से ग्रस्त है .यानी सात करोड़ से ज्यादा मनोरोग असर ग्रस्त लोग हैं .इनमे से तीन करोड़ को फौरी (अविलम्ब )इलाज़ की ,तीस से पैंतीस लाख को इंस्टी -त्युस्नलाइज़करने (मनोरोग चिकित्सा केंद्र )में दाखिले की ,भर्ती कराने की ज़रुरत निमहांस (एन आई एम् एच ए एन एस )नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो -साइंसिज़ ,बेंगलोर के मनोरोग विदों ने जतलाई है .
बालाजी कर्म काण्ड पूजा पाठ के लिए अच्छी जगह हो सकती है .खान पान भी यहाँ शुद्ध है लेकिन इलाज़ तो दवाओं से ,केमोथिरेपी से ही होगा ।

हमारे दिमाग में जब जैव रसायनों का असंतुलन हो जाता है ,कुछ न्यूरो -त्रेंस्मितर कम या ज्यादा हो जातें हैं हम किसी ना किसी दिमागी रोग की चपेट में आ जातें हैं .दवाएं (एंटी डिप्रेसिव ,एंटी -साइकोटिक ,एंटी ओब्सेसिव .एंटी -न्युरोलेप्तिक )ज़रुरत के मुताबिक़ लेने पर यह संतुलन फिर से कायम हो जाता है .मनोरोग भी अन्य रोगों की तरह दवा लेने से दब खप जातें हैं .जीवन की गाडी चल पड़ती है ,रूकती नहीं हैं .

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