गुरुवार, 21 जनवरी 2010

शख्शियत :अद्वैतवादी ग्रीन मोंक -जॉन सीड

ऑस्ट्रेलियाई "रेन फोरेस्ट इन्फार्मेशन सेंटर "के संश्थापक ,पेशे से इंजीनियर रहे पर्या -वरन्विद जॉन सीड का ध्यान प्रकृति और पर्यावरण की लयकी तरफ तब गया जब न्यु साउथ वेल्स के तेरानिया क्रीक में वर्षा वनों को बचाने के लिए १९७९ में एक विशाल जन आन्दोलन हुआ .इसी आन्दोलन ने सीड की ज़िन्दगी का रुख मोड़ दिया ।
आप मानतें हैं:जो जड़ में है वही चेतन में है ।
प्रकृति अन्दर बाहर की यकसां है ,जो हमारे अन्दर सौन्दर्य तत्व है ,वही बाहर पृकृति में छितराया हुआ है ।
हम एक सतत वेब का हिस्सा मात्र है .यह जगत ना तो एक पिरामिड है और ना ही आधुनिक मानव (होमियो -सेपियन )इसमें एक विशिष्ठ स्थान बनाए हुए है .यह हमारा मात्र एक भ्रम है ,हमने प्रकृति को जीत लिया है .प्रकृति और हम दो नहीं एक हैं ।
"एक तत्व की ही प्रधानता कहो इसे जड़ या चेतन ".पूरब का दर्शन ऐसा लगता है इस वृक्ष मानव ने आत्म सात कर लिया है ।हम एम्ब्रियो और फीटस में विभेद नहीं करतें हैं .ठीक उसी दिन से जब स्पर्म का ओवा (ओवम )से मिलन होता है ,यानी फस्ट दे आफ कन्सेप्शन जीव (फ़र्तिलाइज़्द एग )में आत्मा (शख्सियत )आ जाती है .यानी जो जड़ में है व्ही चेतन में भी है .माया और ब्रह्म का अद्वैत ही आखिरी सच है .सीड भी इसी विचार के कायल हैं .
सीड मानतें हैं ,विज्यापन के माया जाल ने एक भ्रम की सृष्टि की है ,जिसके पास जितने भौतिक साधन है ,वह उतना ही सुखी है ।
सुख हमारे अपने और उन अपनों से हमारा अंतर सम्बन्ध है .कोई बाहरी उपादान सुख नहीं हो सकता यही ,जॉन सीड का सारा जीवन दर्शन है ।प्रकृति और हम दो नहीं एक हैं .पर्यावरण और पारिस्तिथिकी (पारितंत्र ,इको सिस्टम का विनाश )हमारा सर्व -नाश है .यही सीड के चिंतन का मूल स्वर है .
कितनी अजीब बात है ,पूरब (यानी हम )पश्चिम हो रहें हैं ,और पश्चिमपूरब बन रहा है ।समस्या वहीँ की वहीँ है .बीच का रास्ता निकले तो बात बने .
कहाँ हम शिव लिंग की पूजा करते थे और पश्चिम मंदिर के शीर्ष पर स्थापित स्वर्ण मीनार की .सोने के गुम्बद शीर्ष की .और कहां हम आज स्वर्ण (भौतिक उपादानों )के पीछे दौड़ रहें हैं और पश्चिम शिवलिंग की उपासना में मुब्तिला है .

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