सोमवार, 18 जनवरी 2010

फ़ूड एंड मूड यानी जैसा अन्न वैसा मन .


अक्सर कहा गया है -जैसा अन्न वैसा आदमी का मन ,चित्त ,मिजाज़ ,जैसा पानी वैसी वाणी .अब साइंस दान भी इस ख़याल को तस्दीक करने लगें हैं .एक ताज़ा अध्धय्यन बतलाता है ,जंक फ़ूड उड़ाते रहने वाले "अवसाद यानी डिप्रेशन "के शिकार हो सकतें हैं ।
इनका चित्त खिन्न (अवसाद ग्रस्त ,उखडा उखडा ,अनमना )रहने लगता है ।
ब्रितानी और फ्रांस के साइंस -दानों ने लन्दन के एक कार्यालय में काम करने वाले ३४८६ औरतों और मर्दों के खान पान और चित्त का विश्लेषण करने के बाद उक्त नतीजे निकाले हैं .उम्र और सेक्स के लिए मार्जिन छोड़ने के बाद ही यह निष्कर्ष निकाले गए हैं ।
संशाधित खाद्य पर निर्भर लोग अपनी वेस्ट लाइन ही खराब नहीं करते अपना चित्त भी खराब कर लेते हैं .मन नहीं लगता इनका ,कहीं भी .जबकि स्वास्थाय्कर ताज़ा भोजन करने वाले प्रसन्न चित्त प्रसन्न वदनखुशदिल ,खुश मिजाज़ बने रहतें हैं .

कोई टिप्पणी नहीं: