रविवार, 21 मार्च 2010

न्युरोथिओलोजि अर्थात ........

न्यूरोलोजी (तंत्रिका विज्ञान और थिओलोजी के मेल से बनेगा "न्युरोथिओलोजि "यानी दोनों का मिश्र अंतर -अनुशाशन के तहत आने वाला एक विज्ञान "तंत्रिका -अध्यात्म -विज्ञान ".मन और शरीर को जोड़ने वाला एक पुल है यह नया अनुशाशन .मन के हारे हार है ,मन के जीते जीत .यह भी तो कहा ही गया है :यु बिकम वाट यु थिंक .यही माइंड बोडी कनेक्ट है ।
तंत्रिका -अध्यात्म -विज्ञान के तहत धर्म और अध्यात्म के तंत्रिका जीव-विज्ञान का आधार तलाशा जाता है .हमारे संवेग और अशरीरी -विचार सरणी हमारे शरीर किर्या विज्ञान ,फायरिंग ऑफ़ न्युरोंस ,तथा सांस की धोकनी ,रिदम ऑफ़ आवर हार्ट का विनियमन करते रहते हैं और हमें खबर भी नहीं होती .हमारे चित्त का रोग के लक्षणों की तीव्रता पर असर पड़ता है ।
४५ फीसद चिकित्सक ऐसा बाकायदा मानते समझतें हैं ,हमारे धार्मिक विशवास हमारे चिकित्सा दायरे हमारी प्रेक्टिस को प्रभावित करतें हैं ।
डॉक्टर्स हर पल दर्द कराहट और मौत से घिरे रहतें हैं ,ऐसे में अध्यात्म ही उनको इस भंवर से बाहर लाता है .शिकागो विश्व -विद्यालय में किये गए एक सर्वेक्षण से यह नतीजे निकाले गए हैं ।
आर्टेमिस हेल्थ इन्स्तित्युत की मुख्य एनास्थिज़ियोलोजिस्त (चेतना हारी -विद )डॉक्टर जस कटारिया कहतीं हैं ,हमारे तमाम अस्पतालों में करीब करीब सभी में एक प्रार्थना कक्ष होता है .यहाँ सुबहो शाम मन्त्र और प्रार्थना ध्वनी विस्तार के बाद गूँजतीं हैं .एक स्प्रिचुअल चार्जिंग होती है इससे ।
कितने ही सर्जन अपने मरीज़ के लिए प्रार्थना और सिजदे में झुक जाते हैं .इसका मरीज़ के साथ आये लोगों पर जादुई प्रभाव पड़ता है .आप बीती सुनाते हुए कितने ही मरीज़ भावुक हो जातें हैं .श्रृद्धा से झुक जातें हैं वह अपने सर्जन के प्रति .मैंने खुद इस स्थिति को भोगा जिया है .कोरोनरी बाई पास ग्रेफ्टिंग (ओपीन हार्ट सर्जरी )के बाद जिस दिन मुझे एस्कोर्ट्स अस्पताल से छुट्टी दी गई उससे ठीक पहले हमारे सर्जन डॉक्टर त्रेहन ने हमारे सीने की हड्डी स्टर्नम का अपनी जादुई ऊंगलियों से स्पर्श करते हुए पूछा -सब ठीक है ,और हम सभी मेरे साथ अनन्यमरीज़ जिन्हें डिस्चार्ज किया गया था अभिभूत थे .डॉक्टर त्रेहन सीधे मेडिटेशन रूम से उठ कर आये थे ।
वैद्यो नारायानो हरी :मरीज़ के लिए डॉक्टर परमात्मा का ही मनुष्य रूप होता है .ओपरेशन थियेटर जाते वक्त मैं शिव बाबा के ध्यान में था ,कूल एंड कंपोज्ड ।
मैक्स अस्पताल दिल्ली के प्रदीप चौबे कहतें हैं :शल्य कर्म से पूर्व मैं प्रार्थना में होता हूँ .ओपरेशन थियेटर में मेरे साथ एक और शक्ति होती है .(तुम मेरे पास होते हो गोया जब कोई दूसरा नहीं होता )।
ओपरेशन थियेटर में कोई तीसरी शक्ति भी हमारे साथ काम करती है यह कहना है डॉक्टर अशोक वालिया का .आप सीनियर एन्स्थिज़ियोलोजिस्त हैं .डॉक्टर अशोक वालिया कहतें हैं हमें मरीज़ को बेहोश करना उसे निश्चेतक देना सिखाया जाता है .वह चेतना में कैसे लौटता है हमें नहीं मालूम .सब उसका करिश्मा है ।
डॉक्टर अशोक रैना याद करते हुए कहतें हैं :उस बच्चे की आँख में कांच की कनी (स्प्लिंतर ऑफ़ ग्लास )गिर गया था .मेरे वरिष्ठ नेत्र चिकित्सक ने कहा था ,केस बहुत बिगड़ चुका है .बीनाई (आँख की रोशनी )बचने की कोई उम्मीद नहीं है .मेने चिकित्सा करने की इजाज़त मांगी .यकीन नहीं होता कोई अदृश्य शक्ति मेरे साथ थी उस बालक की बीनाई ८० फीसद तक बचाई जा सकी ।
आदमी (खासकर चिकित्सक आस का साथ नहीं छोड़ता भले ही आस पल्लू छुडा जाए )।
मेडिटेशन के दरमियान दिमाग अल्फा फेज़ से थीटा वेव्स वाली फेज़ में चला आता है .उत्तेजना का स्थान दीप रिलेक्शेशन ले लेता है .एक पोजिटिव पेरासिम्पे -ठेतिक रेस्पोंस के तहत स्ट्रेस का स्तर कम हो जाता है .दुश्चिंता (एन्ग्जाय्ती ),टेंशन ,हार्ट रेट सब घट जातीं हैं .ओक्सिजन की खपत कम होने के साथ ही ब्लड प्रेशर भी कम हो जाता है .यह कहना है किताब "फोर्टी मिनिट्स विद गाद :ए साइंटिफिक अप्रोच तू हीलिंग थ्रू फेथ एंड प्रेयर "के लेखक मशहूर डॉक्टर निगम का .आपके अनुसार सर्जरी से पहले जो मरीज़ प्राथना करतें हैं .पोस्ट सर्जरी उनमे कमतर पेचीलापन देखा गया है कमतर एंटी बाय्तिक्स की उन्हें ज़रुरत पड़ती है .यह सब कर्शिमा प्राथना का है जो मेडिटेशन या ध्यान -योग का ही एक रूप है .चिकित्सा का आनुषंगिक है अध्यात्म .एक प्रकार की औक्सिलारी मेडिसन है सहायक चिकित्सा है, प्रार्थना ।
हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के साइंसदान प्रोफ़ेसर हर्बर्ट बेंसन (चिकित्सा विभाग )कहतें हैं ,ध्यान ओक्सिजन की खपत को १७ फीसद तक कम करदेता है ,हार्ट रेट को एक मिनिट में तीन बीट्स तक घटा देता है ।
अखिल भारतीय आयुर्वेद विज्ञान संस्थान के साइंसदान ,कैंसर और विकिरण चिकित्सा के माहिर डॉक्टर पी के जुल्का भी अक्सर कैंसर के मरीजों को टोक्सिक स्तर कम करने के लिए प्रार्थना करने के लिए प्रेरित करतें हैं .डॉक्टर रमा कान्त पंडा (कार्डियोलोजी के माहिर )के अनुसार प्रार्थना एक पोजिटिव अतित्युद का सृजन करती है ,इम्यून सिस्टम को मजबूती प्रदान करती है .मरीज़ के प्रति करुना और प्रेम का अपना विज्ञान है .इमोशनल सपोर्ट भी चिकित्सा का अंग है ,प्रार्थना भी .आखिर यूं ही नहीं कहा गया है :मन के हारे हार है ,मन के जीते जीत ।
सन्दर्भ सामिग्री :हेल्प अस गेट वेळ (दी स्पीकिंग त्री ,ए टाइम्स ऑफ़ इंडिया ग्रुप पब्लिकेशन ,न्यू डेल्ही ,सन्डे ,मार्च २१ ,२०१० )

1 टिप्पणी:

Udan Tashtari ने कहा…

हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!

लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.

अनेक शुभकामनाएँ.