रविवार, 4 अप्रैल 2010

ठहाके चिल्ला कर क्यों लगाए जातें हैं ?

वाई दज ए पर्सन क्राई वाइल हेविंग ए हार्टी लाफ ?
हमारी संवेदनाओं से जुडी है सुख दुःख ,ख़ुशी -गम की नस .और संवेदनाओं का केंद्र है हमारा दिमाग ।
ये तमाम उदगार एक विस्फोट (क्राई )के रूप में ही प्रगट होते हैं ।
वैयक्तिक संवेग दोनों प्रकार के हो सकतें हैं ,अच्छे और बुरे .इन्हीं के मुताबिक़ व्यक्ति अनुकिर्या करता है .इस अनुक्रिया की वजह वह सन्देश (सिग्नल्स )बनते हैं जिन्हें मस्तिष्क के उच्चतर केंद्र प्रसारित करतें हैं .जब यह सन्देश (अच्छे या फिर बुरे )अश्रु ग्रंथियों (टिअर ग्लेंड्स )तक पहुंचतें हैं ,आवेग स्वरूप हम दहाड़ मार कर रोतें हैं या फिर जोरदार ठहाका लगातें हैं ।
यह तमाम सन्देश पैरा -सिम्पेठेतिक मार्गों से गुज़रतें हैं .पेचीला संवेगों की इस गुत्थी को हम सहज बोध से जान समझ ,बूझ कर हंस देते है या रोने लगतें हैं .

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