शनिवार, 24 अप्रैल 2010

बेबीज़ को रोते बिलखते अपने ही हाल पर छोड़ने का खामियाजा

बच्चों को (०-५ साला ) उनके ही हाल पर रोते बिलखते छोड़ देना आगे चलकर ब्रेन डेमेज के खतरे के वजन को बढा देता है ।
बेबीज़ को चुप कराना चाहिए ,रेस्पोंस ना मिलने पर वह थक हार कर सो ज़रूर जातें हैं लेकिन निराश होकर तवज्जो ना मिलने का दर्द उन्हें भी होता है .देर तक चिल्लाते कल्पते रहने से पल्लवित होते विकाश्मान नन्ने मस्तिष्क को आगे चलकर नुकसानी उठानी पद सकती है .
'योर बेबी एंड चाइल्ड :फ्रॉम बर्थ तू एज फाइव 'किताब की लेखिका डॉक्टर पेनेलोपेलीच कहतीं हैं ,यह मेरा एक विचार मात्र नहीं है एक तथ्य है ,बच्चों को बिना तवज्जो दिए उन्ही के हाल पर छोड़ना बेहद दिमागी नुकसानी उठाने की वजह बन सकता है आगे चलकर ।
डॉक्टर पेनेलोपे लीच का सिद्धांत परम्परा गत सिद्धांत के ठीक विपरीत है जिसके अनुसार बच्चों को २० मिनिट तक रोते छोड़ना उनके विकाश के लिए अच्छामाना जाता रहा है . .बेशक तवज्जो ना मिलने पर बच्चा थक हार कर झक मार कर सो ज़रूर जाता है लेकिन निराशा को गले लगाकर .रोना सोने में मददगार नहीं ,इग्जाशन की बेहद थकान की वजह बनता है .जिसके खामियाजे आगे चलकर भुगतने पद सकतें हैं .
जब बच्चा तवज्जो ना मिलने पर लगातार रोता बिलखता रहता है तब उसके दिमाग में स्ट्रेस हारमोन 'कोर्तिसोल 'का स्तर बढ़ जाता है .इस प्रकार दीर्घावधि तक रोने कल्पने से कोर्तिसोल का स्तर बेहद बढ़कर ब्रेन डेमेज की वजह बन सकता है ।
बेशक इस का मतलब यह नहीं है ,रोना बच्चे के लिए ठीक नहीं है .बच्चे को रोना नहीं चाहिए .रोना बच्चे की भाषा है स्वभाव है .लेकिन दिक्कत तब पेश आती है जब बच्चे को कोई रेस्पोंस ,किसी भी प्रकार की तवज्जो इस दरमियान नहीं मेल पाती हैं .यहाँ आकर बच्चा टूट जाता है .उसका हौसला पस्त हो जाता है .उसकी ऊर्जा का क्षय होता है ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-बेबीज़ लेफ्ट तू क्र्याई अत रिस्क ऑफ़ ब्रेन डेमेज लेटर इन लाइफ (टाइम्स सोफ़ इंडिया ,अप्रैल २४ ,२०१० )

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