मंगलवार, 4 मई 2010

पेड़ की थरथराहट

कुछ दिन पहले मेरे पड़ोस का नीम का वृक्ष सरे आम जिबह किया गया था .किसी ने चूँ भी ना की थी .उस विभीत्सदृश्य को देख कर रोंगटे मेरे भी खड़े हो गए थे .नीम के अंग प्रत्यंग यहाँ वहां छितराए हुए थे ,किसी आतंकी विस्फोट के ज़िंदा मलबे से ।
देख रहां हूँ ,मेरे आँगन में खड़ा आम का फलों से लड़ा वृक्ष इन दिनों बेहद भयभीत है .आशंकित है मालिक (सरकारी माली ,निदेशक बाग़- वानी) उसे भी ना कटवा दे .कल उसने उड़ते उड़ते सुनाथा मालिक की बीबी अपनी पड़ोसन से कह रही थी ,ये आम का वृक्ष कटवाना है .हमारी सारी फुलवारी बेमजा हो जाती है इसके गिरते पड़ते पत्तों से .पहले बौर से बुरा हाल था .पतझड़ का नज़ारा तो देखने ही वाला था ।
मालिक द्वारा काट कर फैंक दिए जाने को शायद वह अपनी नियति मान चुका है .मालिक बेचारा अपनी अकडू लुगाई के सामने कर भी क्या सकता है .घर भले ही ना व्यवस्थित कर सके अपना ,.वनस्पति को तो कर ही सकता है .आखिर होर्टी- कल्चर का डायरेक्टर है मेरा मालिक .पेड़ दार्शनिक हो चला था .उसकी भीती सिरे से काफूर हो चुकी थी किसी संत की मानिंद उसने कहा -
मूरख को तुम राज दियत हो ,पंडित फिरे भिखारी ,
संतों कर्मन की गति न्यारी ।
उज्जवल बरन दीन्हीं बगुलन को ,कोयल कर दीन्हीं कारी ,
संतों कर्मन की गति न्यारी .

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