सोमवार, 31 मई 2010

ग्रीन राइड ज़रूर है साइकिलिंग लेकिन ........

नगरों -महा -नगरों की गंधाती प्रदूशकों से लदी हवामें साइकिलिंग कितनी नुकसानी पहुंचा सकती है इसका हमें और आपको अंदाजा नहीं है .काम पर साइकिल से जाना स्वास्थ्य वर्धक विकल्प नहीं रह गया है .वजह है वह नेनो -पार्तीकिल्स ,लाखों लाख विषाक्त प्रदूषक जो सवार की सांस की हर धौकनी को बेमानी बना देतें हैं ,क्योंकि पैदल या फिर गाडी में सफर करने वालों से कोई पांच गुना ज्यादा टोक्सिक नेनो -प्रदूषक साइकिल सवार अपने फेफड़ों में ले जाने को विवश है .लम्बी सांस खींचनी पडती है सवार को पेडालिंगके दरमियान ।
एक घन -सेंटीमीटर -हवा में कई हजार नेनो -कण होतें हैं प्रदूषकों के, नगरीय हवा में, जो सांस के संग सवार के फेफड़ों में दाखिल होकर रिस -पाय -रेत्री एवं हृद -रोगों की बड़ी वजह बन रहें हैं ।
एक हजार क्यूबिक सेंटीमीटर हवा अपने फेफड़ों में एक बार में भर लेता है साइकिल सवार जिसमे कई करोड़ तक नेनो -प्रदूषक रहतें हैं .पूरे सफर में यह तादाद बढ़ कर अरबों -अरब हो जाती है ।
अपने अध्धययन में साइंसदानों ने साइकिल सवारों को मास्क पह्नादिये जिनमे ऐसे उपकरण समाहित थे जो प्रदूषक कणों का हिसाब रखते थे .पता चला 'ब्रुस्सेल्स का साइकिल सवार एक मीटर आगे बढ़ने में ५.५८ मिलियन ,मोल (बेल्जियम का एक छोटा सा उपनगर )१.१ मिलियन नेनो -पार्तिकिल्स अपने फेफड़ों में उड़ेल रहा था .कार में चलने वालों के बरक्स यह संख्या ४-५ गुना ज्यादा थी ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-साइकिलिंग इन सिटी :ग्रीन राइड इज नोट ए हेलदी ओप्शन (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मे ३१ ,२०१० )

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