सोमवार, 31 मई 2010

दर्द -हारी ही बन जाता है 'एक्यु -पंक्चर '

हाथ पैरों की पीड़ा हर लेता है -एक्यु -पंक्चर .जानतें हैं कैसे ?न्युरो -साइंस -दानों (स्नायुविक विज्ञानियों )ने पता लगाया है ,एक्यु -पंक्चर के दौरान एक नेचुरल मोलीक्युल 'एडिनो -साइन 'का स्राव प्रेसर पॉइंट्स से होने लगता है .यह एक दर्द -हर (एनल -जेसिक )की माफिक काम करता है ।
विज्ञानियों ने अपने अध्धययन में पहले तो चूहों को इन्फ्लेमेसन पैदा करने वाले एक पदार्थ की सुइंयाँ लगा दीं,सीधे पा(पंजे ,पैर ) में .अब नी (घुटने )की मिड लाइनके नीचे बारीक सुइंयाँ फिट की गईं ,डाली गईं .एक्यु -पंक -चरकी दुनिया में इन्हें ज़ुसंली -पॉइंट्स कहा जाता है .(यह एक सुविख्यात एक्यूपंक्चर लोकेसन है ).आहिस्ता आहिस्ता हर पांच मिनिट बाद अब इन सुइंयों को रोटेट किया गया .तीस मिनिट तक यह क्रम ज़ारी रखा गया .यह एक मानक एक्यु पंक्चर इलाज़ का हिस्सा है ।
पता चला प्रयोग के दौरान और ठीक बाद में भी सुइंयों के आस पास के ऊतकों में 'एडिनोसाइन 'का स्तर २४ गुना ज्यादा हो गया है .माउस की पीड़ा भी 'रेस्पोंस टाइम तू टच एंड हीटके प्रति कम पाई गई ।
अब यही प्रयोग उन माइसपर दोहराया गया जिन्हें आनुवंशिक इंजीनियरिंग के ज़रिये इस प्रकार पैदा किया गया ताकि 'एडिनोसाइन 'उनमे कम रहे .इन चूहों को पीड़ा से छटपटाते देखा गया .एक्यु -पंक्चर इनकी पीड़ा कम नहीं कर सका ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-एक्यूपंक्चर वर्क्स बाई रिलीजिंग नेचुरल पैन -किलर इनटू बॉडी (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मे ३१ ,२०१० )

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