मंगलवार, 24 अगस्त 2010

हीपेताइतिस -ई वेक्सीन की दिशा में चीन के बढ़ते कदम

विज्ञान साप्ताहिक लांसेट में छपी एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक़ चीनी माहिरों ने हीपे -ताइतिस -ई के खिलाफ एक असरकारी प्रोटो -टाइप वेक्सीन का सौ फीसद काम याब परीक्षण कर लिया है .तीसरी दुनिया के लोगों के लिए यह एक एहम खबर है जहां अकसर यह संक्रमण प्रसार पाता है .
तकरीबन १०,००० स्वयं -सेवियों पर इस फ़ॉर्मूले कीतीन डोज़िज़के रूप में आज़माइश की गईं हैं .जो ना सिर्फ असरकारी साबित हुईं हैं ,वेक्सीन के कोईख़ास अवांच्छित प्रभाव भी सामने नहीं आयें हैं .जो आयें भी हैं उन्हें मामूली ही कहा जाएगा .
अकसर जल आपूर्ति के मलसे संदूषित हो जाने पर यह रोग संक्रमण फैलता है .जो लीवर को रोग संक्रमित करता है .जौंडिस(आम भाषा में पीलिया ,ज्वर और मिचली यानी वोमिटिंग इसके आम लक्षण हैं) .अब से कोई तीन दशक पहले इसे एक सुव्यक्त लेकिन स्पष्टतय भिन्न रोग का दर्जा मिल गया था ।
अध्ययन में दिए गये आंकड़ों के अनुसार दुनिया भर में एक तिहाई लोग इस रोग से संक्रमित हो चुकें हैं .बेशक इस रोग की वजह से मरने वालों की दर कम ही रहती है लेकिन पुरानी चली आई लीवर की बीमारी तथा गर्भ- वती महिलाओं के लिए ,उनके भ्रूण के संग संग ज्यादा बड़ा जोखिम बना रहता है ।
जिंग्सु ट्रायल इस वेक्सीन में अपनाई गई प्रक्रियाकी असर्कारिता और सुरक्षा को परखने का तीसरा और आखिरी चरण है .
जैसा इसके नाम से विदित होता है यह ट्रा -यल्ड फोर्म्युला एच ई वी २३९ एक रिकोम्बिनेंट वेक्सीन है .इट इन्क्लुड्स ए प्रोटीन फ्रॉम दी वायरस डिज़ा -इंड टू स्तिम्युलेट दी बॉडीज इम्यून दिफेंसिज़ ।
रिकोम्बिनेट का मतलब जीवन इकाइयों को जोड़कर आनुवंशिक पदार्थ प्राप्त करना है ।
४८,०००स्वस्थ बालिगों को जिनकी उम्र १६-६५ साल तक थी यह फोर्म्युला दिया गया .जबकि इनके सम -कक्ष एक अन्य वर्ग के तमाम लोगों को वेक्सीन के स्थान पर छद्म वेक्सीन ही दी गई .यानी प्लेसिबो ट्राई किया गया .६ माह के भीतर तीन खुराख वेक्सीन ग्रुप को दी गईं .इसके बाद एक साल तक इनका मानी -टरन किया गया .प्लेसिबो ग्रुप में १५ हिपेताइतिस-ई से संक्रमित हो गए .लेकिन वेक्सीन ग्रुप के लोगों में से सभीहीपे -ताइतिस -ई इन्फेक्शन से बचे रहे ।
बढ़िया बात यह है जिन लोगों को सिर्फ दो ही खुराकें मिली उनमे भी यह असरकारी साबित हुई .रोग संक्रमण से इसने पूरा बचाव किया ।
एक माह के अंतर से दो डोज़ देकर रोग संक्रमण से सुरक्षा मुहैया करवाई जा सकती है उन यात्रियों को जिनका ऐसे इलाके में जाना ज़रूरी है जहां यह रोग जातीय या स्थानिक रोग की शक्ल ले चुका है .इंस्टिट्यूट ऑफ़ डायग्नोस्टिक एंड वेक्सीन डिवलपमेंट इन इन्फेक -शस डि -जीज़िज़ के रिसर्चरों ने इस अध्ययन को अंजाम तक पहुंचाया है .,नीं -शो -क्सिया इसके अगुवा रहें हैं .

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