बुधवार, 11 अगस्त 2010

कहाँ गए वो पारितंत्र के पहरुवे ?

वाँटिड अलाइव :फ्रोग्स /ए वर्ल्ड वाइड हंट हेज़ बिगन फॉर १०० "मिसिंग "स्पीशीज ऑफ़ एमफिबियंस इन्क्लुडिंग ए टोड विद गोल्डन स्किन एंड ए फ्रोग देत गिव्ज़ बर्थ थ्रू इट्स माउथ/साइंस -टेक /मुंबई मिरर अगस्त १० ,२०१० ,पृष्ठ २५ )।
इन दिनों एक अंतर -राष्ट्रीय अभियान चलाया जा रहा है तकरीबन लापता (गुम हो चुके विलुप्त प्राय )उभयचरों की खोज का .१४ मुल्क इसमें शिरकत कर रहें हैं ,पांच माहाद्विपों के .जलवायु परिवर्तन इनकेदिनानुदिन बढ़ते विलोप का कारण बन रही है .
गुम हो चुके एमफिबीयंस में सुनहरी टोड ,जैक्संस क्लाइम्बिंग सैल -मन्डर,से लेकर हुला पैन- टिड फ्रोग तक विरल उभयचर शामिल हैं .
विलुप्त प्राय या फिर विलोपन के कगार पर खड़ीं इनमे से कई प्रजातियाँ गत कई दशकों में ढूंढें नहीं मिलीं हैं .इनमे तुर्केस्तानियन सैल -मन्डर भी शामिल है जिसे आखिरी बार १९०९ में ही देखा गया था ।
गौर तलब है जल और थल पर समान रूप निवास करने वाले ये तमाम उभयचर प्राणी पर्यावरण पारिस्थिति तंत्रों में आने वाले मामूली से मामूली बदलावों के प्रति अति संवेदी होतें हैं .इनकी आज एक तिहाई प्रजातियाँ लुप्त होने की कगार पर खड़ीं हैं .रेड डाटा बुक में इन्हें कब का शामिल किया जा चुका है .इनमे से कितनी ही फफूंद से पैदा रोगों से नष्ट aहो चुकीं हैं .जल जिनका वाहक बनता ।
अनेक रोगों का वेक्टर बनने वाली मच्छरों की तमाम प्रजातियों का यह विनियमन करतें हैं .सीमित रखतें हैं इनकीअनियंत्रित बढवार को .अलावा इसके इनकी चमड़ी से अनेक किस्म के दर्द नाशी ,जीवन रक्षक दवाएं तैयार की जातीं रहीं हैं .इनसे तैयार एनल्जेसिक असर में मोर्फीन से २०० गुना ज्यादा राहत देतें हैं .
कहना ना होगा यह पारितंत्रों के टूटने की खबर वक्त रहते दे देतें हैं .बेहद संवेदी हैं ये प्राणी पारिश्थिति तंत्रों में होने वाले सूक्ष्मतर बदलावों के भी प्रति .कंज़र्वेशन इंटर -नेशनल, इस हंट में ,एम्फिबीयंन स्पेशलिस्ट ग्रुप का नेत्रित्व कर रहा है. इस अन्वेषण में इंटर -नेशनल यूनियन फॉर दी कंज़र्वेशन ऑफ़ नेचर की भी बराबर भागेदारी रही है ।
लक्षित प्रजातियों की खोज में टोलियाँ निकल पड़ीं हैं जो एक हफ्ते से लेकर २ माह तक का वक्त इस खोज में लगाएंगी मौके पर पहुँच कर ।
ऑक्टोबर२०१० में जैविक विविधता पर संयुक्त राष्ट्र की प्रस्तावित बैठक जापान में संपन्न होनी है .समझा जाता है दुनिया भर की सरकारों के लिए यह आत्म मंथन का वक्त होगा -आखिर क्यों २००२ में ली गई शपथ का वह पालन नहीं कर सकीं.पर्यावरण -पारी -तंत्र इस दरमियान टूटते रहे ,उभयचर विलुत होते रहे .क्यों ?
भले ही हम इन्हें ना खोज पायें ,इनकी गैरहाजिरी हमारे क्रियाकलापों ,कार्बन फुट प्रिंट्स ,पृथ्वी को बाँझ बनाने की हमारी साजिश का पर्दा फाश तो करती ही है .

कोई टिप्पणी नहीं: