गुरुवार, 26 अगस्त 2010

मुद्दा उनकी पगार का (तीसरी किश्त )

टेक ए हाइक.अवर एम्- पीज़ शुड हेव गिविन देम्सेल्व्स ए रेज़ ऑफ़ २०००%,नॉट २०० %(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अगस्त २५ ,२०१० ,सम्पादकीय पृष्ठ-२० ,व्यंग्य आलेख जुग सुरैया )।
बेहतरीन व्यंग्य आलेख है जो आज के सन्दर्भ में बड़ा मौजू है .जुग सुरैया का मूल स्वर यही है ,हमारे सांसद बड़े किफायत -शायर हैं ,सिर्फ २०० %अपनी पगार बढ़ाई ,२०००% नहीं ,चाहते तो ऐसा कर भी सकते थे .आखिर एक चीफ एग्ज़िक्युतिव ऑफिसर , जिसके मातहत १०० ,००० तक मुलाजिमकाम करतें हैं एक करोड़ मासिक तक का पैकेज पा जाता है .जबकि हमारा एक एक सांसद २० लाख लोगों की संभाल रखता है .अलावा इसके नौकरी से बर्खास्त किये जानेपर उसे(सी ई ओ ) बख्शीश के रूप में बहुत कुछ मयस्सर है .यहाँहमारे सांसदों के लिए चुनाव हार जाने के बाद" ठन ठन पाल मदन गोपाल ".अगेले चुनाव में टिकिट मिलने का कोई निश्चय भी नहीं .मिल भी जाए तो तिनका तिनका जोड़ो धन ।
इस दरमियान हमारी एक प्रवर वित्तीय अधिकार (अवकाश प्राप्त ),विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी मंत्रालय एवं ज्योतिष के माहिर श्री मुरारी लाल मुदगिल साहिब और एक जाने माने अर्थ -शास्त्री श्री प्रकाश सेसांसदों द्वारा खुद अपनी ही पगार बढा लिए जाने के मुद्दे पर बात- चीत हुई ।
दोनों का मूल स्वर यकसां था .प्रोफ़ेसर प्रकाश ने तो यह सवाल भी उठा दिया ,सेवा निवृत्त लोगों को जब पेंशन मिलती है तो नेताओं को क्यों नहीं .चुनाव लड़ने के लिए उन्हें कितने पापड बेलने पड़ते हैं और फिर उनकी जिम्मेवारी कितनी ज्यादा है ।
श्री मुदगल उमा भारतीजी के पी ए भी रह चुके हैं उनका साफ़ कहनाहै खर्चे इन सांसदों के आमदनी से कहीं ज्यादा होतें हैं .उमा भारती के पास तो पपीता तक खाने के लिए पैसे नहीं होते थे हम लोग जुटा -ते थे .यह विदूषी तो पर्स ही नहीं रखती थी .बहुत बड़ी होती है नेताओं की कन्स्तित्युवेंसी ,उससे भी ज्यादा होतें है इसके ऊपर खर्ची आप क्या जाने ?लोग जो एतराज जता रहें हैं इनकी बढ़ी हुई पगार पर मुगाल्तें में हैं .अलबत्ता इन्हें अपनी तुलना नौकरशाहों से नहीं करनी चाहिए हैं यह जन सेवक हीहैं .वैसा ही व्यवहार करना चाहिए .आज इनकी स्थति निश्चय ही कल से बहुत बेहतर है .

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