गुरुवार, 19 अगस्त 2010

व्हिस्की उप -उत्पाद से जैव -ईंधन

साइंटिस्ट क्रियेट बायो -फ्यूल फ्रॉम व्हिस्की बाई -प्रोडक्ट (मुंबई मिरर ,अगस्त १९ ,२०१० ,पृष्ठ २४ ).हाई ऑन हाई -वे :ए ग्रीन कार देट रन्स ऑन व्हिस्की (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,अगस्त १९ ,२०१० ,पृष्ठ १९ )।
व्हिस्की प्रेमी अगर चाहें तो यह खबर पढ़कर एक ड्रिंक स्काच का तैयार कर सकतें हैं अपने तैं.स्कोट लैंड के साइंस दानों ने व्हिस्की के आसवन के बाद बचे उप -उत्पादों सेएक ऐसा बायो -फ्यूल तैयार कर लिया है जिसे मौजूदा कारों में बिना कोई फेरबदल किये पेट्रोल डीज़ल के साथ भी मिलाया जा सकेगा ।
एडिनबरा नेपियर यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने इसके व्यावसायिक उत्पादन के लिए पेटेंट के लिए भी आवेदन कर दिया है .यह एक दो साला रिसर्च प्रोजेक्ट का हासिल हैं ।
व्हिस्की के आसवन के बाद "पोट आले "कोपर स्टिल्स (बिना बुदबुदे का तरल )तथा द्राफ्फ़ बचतें हैं ।
द्राफ्फ़ क्या है ?
आम भाषा में इसे स्पेंट ग्रेन कह सकतें हैं .इट इज दी रेज़ी -ड्यू लेफ्ट इन ब्रूइंग आफ्टर दी ग्रेन हेज़ बीन फर्में -टिड,यूज्ड एज फ़ूड फॉर केटिल।
इन दोनों से ही अंतिम उत्पाद के बतौर जैव ईंधन ब्युटा -नोल प्राप्त किया जाता है .ज़ाहिर है यह ऐसे जैविक पदार्थ से हासिल किया गया जिसे पहले ही उप -उत्पाद के रूप में हासिल किया जा चुका है .इसलिए इसे ग्रीन फ्यूल कहना अति -श्योक्ति नहीं समझा जाना चाहिए .यूं इसे स्वतंत्र रूप में भी ईंधन के तौर पर काम में लिया जासकता है .लेकिन एक तंत्र तो चाहिए ही इसके वितरण के लिए .आसान काम है इसका ५-१० फीसद भाग पेट्रोल और डीज़ल के साथ मिलाकर मिश्रण के तौर पर काम में लिया जाए ।
स्कोट लैंड जिसके नाम पर स्कोच को जाना जाता है (स्कोट -लैंड की बनी व्हिस्की ही तो स्कोच है )के व्हिस्की उद्योग के लिए इसके बड़े मानी हैं .रेवेन्यु का यह एक नया स्रोत हाथ आया है .यह वन तथा वन्य-जीवन को उजाड़ कर हासिल नहीं किया गया है .पर्यावरण मित्र है यह जैव -ईंधन सही मायनों में .जिसे मौजूदा कार मोडलों में ही काम में लिया जा सकता है .

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