गुरुवार, 19 अगस्त 2010

मनो -विकारों के प्रबंधन में सलाह मशविरे के साथ "साइके -ड़ेलिक ड्रग्स "

साइके -ड़ेलिक ड्रग्स फॉर डिप्रेसन ?ज्यूरी इज आउट (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,अगस्त १९ ,२०१० ,पृष्ठ १९ )।
साइके -ड़ेलिक दवाएं हेल्युसिनो -जेनिक होतीं हैं दृश्य एवं श्रव्य दोनों तरह के हेल्युसिनेसंस पैदा कर सकतीं हैं .स्तेमाल करता को वह आवाजें सुनाई दे सकतीं हैं जो उसके आसपास के परिवेश में हैं ही नहीं ,अजीबो -गरीब दृस्य दिखलाई दे सकतें हैं .अलावा इसके कुछ मनो -रोगों के लक्ष्ण भी ये दवाएं पैदा कर सकतीं हैं .इसीलिए इनका स्तेमाल और शोध मनो -रोगों के प्रबंधन में काफी पहले से निलम्बित रहा आया है .इन दवाओं के असर में आकर साइके -ड़ेलिक संगीत और साइके -ड़ेलिक आर्ट भी सृजित हुई है ,एब्नोर्मल साइकिक स्टेट्स ही इसका प्रेरक तत्व रही है ।
अब एक बार फिर कुछ साइंसदान इनकी आज़माइश की सिफारिश साइको -थिरेपी ,बिहेवियरल -थिरेपी के संग करने की, कह रहें हैं .इनमे स्विट्ज़रलैंड के साइंसदान प्रमुख हैं .इस बात की पड़ताल होनी चाहिए ,अवसाद ,कम्पल्सिव डिस -ऑर्डरस,तथा लाइलाज पुरानी चली आई चिर -कालिक दर्द के प्रबंधन में यह कितनी असरकारी सिद्ध होतीं हैं .शोध पार ढक्कन नहीं लगना चाहिए ।
हालिया ब्रेन स्केन स्टडीज़ से ऐसा संकेत मिल रहा है ,लाइ -सर्जिक -डाई -इथाइला -माइद(एल एस डी ),कीटामाइनतथा साइलो -साइबिन (साइके -देलिक्स )तथा मेजिक मशरूम्स जैसी रिक्रियेश्नल दवाओं में एक साइको -एक्टिव कंपोनेंट होता है जो चित्त पर ऐसा असर करता है , दिमाग के प्रकार्य को इस तरह प्रभावित करता है ,जिससे कुछ मानसिक विकारों यथा अवसाद , ओब्सेसिव कम्पलसिवडिस -ऑर्डरस ,बाई -पोलर -इलनेस के लक्षणों की उग्रता घट सकती है .मरीज़ का जीवन और जगत ,स्थितियों के बारे में नज़रिया बदल सकता है .मनो जगत भी ।
एक प्रकार के उत्प्रेरक का काम कर सकतीं हैं ये दवाएं .यही केटएलिस्ट दर्द के एहसास और समस्याओं के प्रति मरीज़ का रूख मोड़ सकता है सकारात्मक तौर पर .एक बिहेवियरल -थिरेपिस्ट ,एक साइको /क्लिनिकल /साइकोलोजिस्ट साइके -डेलिक्स का बेहतर स्तेमाल करवा सकता है .सवाल क्वांटम ऑफ़ साइके -ड़ेलिक ड्रग का है .अलबत्ता इसकी खुराख कम से कम ही रहनी चाहिए (मिनिमम डोज़ )।
इनका असर व्यक्ति विशेष के लिए अलग अलग हो सकता है .कुछ लोगों को असीम आनंद की अनुभूति हो सकती है तो कुछ की बे -चैनी बे -काबू हो पेनिक में भी तब्दील हो सकती है .एहम सवाल है इनके सटीक विनियमन का .मानसिक परेशानियों मानसिक स्वास्थ्य को पभावित कर सकतीं हैं ये दवाएं .ब्रेन सर्किट्स और न्यूरो -ट्रांस -मीटर सिस्टम्स को भी प्रभावित कर सकतीं हैं ये दवाएं .जैव -रसायन -शास्त्र (बायो -केमिस्ट्री )ही तो तब्दील हो जाती है मानसिक रोगों में ।
यु एस साइंटिस्ट में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन के मुताबिक़ कीटामाइनकी छोटी सी खुराख सुईं के ज़रिये देते ही असर दिखाती है .बाई -पोलर -इलनेस के मरीज़ का मन देखते ही देखते बदल जाता है .अवसाद से निकाल कर 'लो' से 'हाई' में ले आती है ये दवा .

1 टिप्पणी:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत उपयोगी पोस्ट है!
--
इस तरह की पोस्ट लगाते रहिएगा!