रविवार, 19 सितंबर 2010

गुस्सैल भी हो सकतें हैं "खब्बू "?

पहले यहाँ बतलादें लेफ्टियों से मेरा मतलब रक्त रंगियों से (राजनितिक वाम -मार्गियों )नहीं है खब्बूओ से है (खब्बू लोगों से है जिनका बायाँ हाथ ज्यादा काम करता है एहम भूमिका निभाता है ,ज्यादा ताकत उनके बाएं हाथ में ही होती है .
रिसर्च से पता चला है इनके दिमाग के दोनों अर्द्ध गोल परस्पर बेहतर संवाद करतें हैं .बस यहीं से निगेटिव इमोशंस पैदा होने के मौके बढ़ने लगतें हैं .उलटा सोचना ,रिनात्मक सोचना इनका प्रारब्ध बन जाता है ?
रिसर्च के मुखिया रहें हैं ,मेसाच्युसेट्स स्थित मेर्रिमैक कोलिज के प्रोफ़ेसर ऑफ़ साइकोलोजी रुथ प्रोप्पेर ।
यह भी अजीब इत्तेफाक है (या सायास ऐसा किया गया है )किचिन या फिर कैन ओपनर से लेकर ,गार्डन टूल्स ,नाइव्ज़,चाकू कैंची आदि लेफ्टियों के हिसाब से नहीं बनाए गयें हैं .दायें हाथ से काम लेने वालों के अनुरूप गढ़े गएँ हैं .कितनी ही स्कूल -ई पीढ़ियों से ज़बरिया सीधे हाथ से लिखवाया जाता रहा ।
शताब्दियों से अभिशप्त रहे आयें हैं खब्बू यह सुनने के लिए: खब्बू मनहूस होतें हैं ,हतभागी होतें हैं ,अकसर इनके काम करने के ढंग में फूहड़ता झलकती है .बेढंगा होता है इनका रंग ढंग .(बहर -सूरत हम इस बात से सहमत नहीं हैं ,हम जानतें हैं एक बेहतरीन करीने वाले इंसान को जो एक बेहतर इंसान हैं .हृद रोगों के माहिर हैं ,एस्कोर्ट्स अस्पताल ,नै दिल्ली में ,नाम है समीर मोहन श्रीवास्तव .मिलकर देखें इनसे एक मर्तबा लगेगा के किसी बहुत ही नफासत पसंद बहुत अपने से किसी एक से मिलें हैं .इत्तेफाकन आप मेरे कार्डियो लोजिस्ट भी रहें हैं ,हमारी एक अजीजा के भी,अजीजा खुद भी लेफ्टी हैं ।).
जो हो संदर्भित रिसर्च एक और वजह पैदा कर सकती है इनके सड़ने बुझने खीझने की .ऐसे में गुस्सा तो आयेगा ही .जर्नल ऑफ़ नर्वस एंड मेंटल डिजीज में यह अध्ययन प्रकाशित हुआ है .

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