रविवार, 19 सितंबर 2010

क्यों ,होतें हैं आकाशीय पिंड गोल ?

अतंरिक्ष के सभी पिंड गोलाकार होतें हैं तो इसकी वजह वह सार्वत्रिक एवं सार्व -कालिक गुरुत्वाकर्षण बल ही बनता है जिससे अस्त्रोनोंमिकल स्केल पर यह सारी कायनात ही संचालित है .यह बल दो पिंडों के बीच परस्पर दूरी के वर्ग के विलोम अनुपात में होता है .चाहें उनका द्रवय्मान कुछ भी क्यों ना हो ।
इसीलिए यह बल सभी दिशाओं से समान रूप दोनों पिंडों के सांझा गुरुत्व केन्द्रों की ओर कार्य करता है .ऐसे में जब भी अन्तरिक्ष के किसी हिस्से में एक क्रांतिक द्रवय्मान के तुल्य पदार्थ ज़मा होने लगता है बाकी बचा काम यही केन्द्रीय गुरुत्व बल कर देता है ।सितारों का जन्म भी तो इसी तरह होता है जो आरम्भ में गैस ओर अन्तरिक्षीय धूल का एक बादल ही तो होता है .जब किसी भी अन्तरिक्षीय विक्षोभ की वजह से अंतरिक्ष के किसी भाग में यह बादल आसपास से ओर पदार्थ ग्रहण कर बड़ा होने लगता है ,गुरुत्वाकर्षण बल इस बादल को अपने ऊपर ही दबाता ढेर करता चलता है .ऐसेमें एक मुकाबला चल निकलता है गुरुत्वीय संकुचन ओर आन्तरिक प्रेशरमें जो सितारे के आदिम स्वरूप को बाहर की तरफ फुलाता है .दाब ओर आंतरिक ताप सीमान्त हो जाने पर सितारों की एटमी भट्टी चालू हो जाती है .हाइड्रोजन ईंधन के रूप मेजलने लगता है .सितारा रौशनी बिखेरने लगता है .जी हाँ !हाई -ड्रोजन इस सृष्टि के हर कौने दिग- दिगांतर में व्याप्त है .कमसे कम एक घन मीटर अन्तरिक्ष के भाग में हाई -ड्रोजन का एक परमाणु तो मौजूद रहता ही है .हाई -ड्रोजन के ईंधन के रूप में जलने से बनता है .हीलियम ,ओर इसी क्रम में सितारों की एटमी भट्टी में उत्तरोतर भारी से ओर भारी तत्व बनते चले जातें हैं .कुदरत के बेहतरीन रासायनिक कार- खाने हैं सितारे जिनकी एटमी भट्टी में तत्वों का निर्माण होता है .हां -ड्रोजन के बाद ईंधन के रूप में जलता है हीलियम ,फिर कार्बन वगेरहा वगेरहा .
बस कुछ सौ किलो -मीटर्स का व्यास पर्याप्त रहता है इस अन्तरिक्षीय पिंड को गोलाकार शक्ल देने के लिए .फिर चाहे उसके अन्दर समाविष्ट पदार्थ की प्रकृति कुछ भी क्यों ना हो .

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