गुरुवार, 16 सितंबर 2010

माँ बन सकेंगी पचास -साठ साला भी

न्यू -मेथड टू टर्न बेक "बायो -क्लोक "(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,सितंबर १६ ,२०१० ,प्रष्ठ २१ )।
कहतें हैं एक उम्र के बादमाँ बनने में बायो -क्लोक आड़े आती है .अंडाशय ह्यूमेन एग (ओवम )ही बनाना बंद कर देता है .अब अंडाशय से दोबारा ओवम तैयार करवाने के लिए स्टेम सेल्स का प्रायोगिक स्तेमाल चूहों पर कामयाबी से करके देखा परखा जा चुका है .इससे यह उम्मीद बंध चली है यही तकनीक उन औरतों पर भी आजमाई जा सकेगी जो संतान का मुह देखने के लिए तरस रहीं हैं .बिना इन -वीट्रो -फ़र्तिलाइज़ेसन के अब औरत की खुद की ओवरीज़ से ह्यूमेन एग तैयार करवा लेजाने का मार्ग प्रशस्त हुआ है .इसे मिश्र के एक फर्टिलिटी माहिर ओसामा आज़मी साहिब ने ईजाद किया है ।
इस टेक्नीक का विशेष फायदा वह औरतें उठा सकेंगी जिनकी ओवरीज़ प्री -मेच्योर फेलियोर का शिकार हो ज़वाब दे जातीं हैं ओवम तैयार करना बंद कर देती हैं मिनो -पोज़ से पहले .या फिर जिन्हें मिनो -पोज़ ही जल्दी हो जाता है .उम्र से पहले ही जो रजो -निवृत्ति तक आ पहुंचतीं हैं .
चूहों पर आज़माइश के बाद अब आज़माइश औरतों पर होनी है .हम जानतें हैं कलम कोशायें क्षति ग्रस्त कोशाओं की मरम्मत कर लेतीं हैं .मास्टर सेल्स कहलातीं हैं जिन्हें सोफ्ट वेयर देकर मनमाफिक अंग या ऊतक ,पेशी आदि कुछ भी तैयार करवाया जा सकता है ।
हृद रोगियों और अस्थि भंग (बोन फ्रेकचर )के मरीजों पर कलम कोशाओं को कामयाबी पूर्वक छोटे छोटे ट्रायल्स में आजमाया जा चुका है .अलबत्ता अबोर्टिद फीटस से ही इन्हें जुटाया जा सकेगा .या फिर इसी एवज कलम कोशाओं से फीटस ही तैयार कर लिया जाएगा जो एक चिकित्सा नीतिसम्बन्धी प्रश्न है .और खासा उलझा हुआ है ।
बांझपन के कामयाब इलाज़ के लिए कलम कोशाओं की आज़माइश पहली मर्तबा ही हो रही है ।
चूहों से लेकर स्टेम सेल्स को बालिग़ मादा चूहों पर आजमाया जा चुका है .इनसे बायो रिदम को पीछे की ओर लौटाया जा सकता है .ओवरीज़ को फिर जल्दी से चालू करवाया जा सकता है ओवम बनवाये जा सकतें हैं .

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