बुधवार, 29 सितंबर 2010

एक सेशन री -कनेक्तिव थियरेपी का पर्ल के संग (ज़ारी )

मरीज़ को हाथों की ऊँगलियाँ खुली रखने की हिदायत के साथ आराम से लिटा दिया जाता है या फिर आराम से बैठा रहने के लिए भी कहा जाता है .अब पहले स्वयं हीलर" हीलिंग फ्रीक्युवेंसीज़" के एक पूरे स्पेक्ट्रम(ए बैंड ऑफ़ फ्रीक्युवेंसीज़ ) से पहले खुद जुड़ता है .ऊंगलियों से किया जाता है यह कनेक्ट होने का काम .इस विद्या से नावाकिफ व्यक्ति को लग सकता है हीलर पानी में से बामुश्किल गुज़र रहा है ।हाथ पैर मार रहा है .
अब वह सेहत स्वास्थ्य -प्रदातायानी हीलर , मरीज़ के आसपास घूमता है सिर से पाँव तक बारहा .ऊंगलियों को नचाता हुआ .लगातार मरीज़ से अपना फासला कम ज्यादा रखता हुआ .लगता है वह अपने हाथों के स्पंदनों से खेल रहा है .इसका तुरंत और तात्कालिक प्रभाव मरीज़ पर यह पड़ता है ,पलकें बेतहाशा झपकने खुलने लगती हैं ,फड़ फड़ा -ती हैंजल्दी जल्दी ,हाथ पैरों की ऊंगलियों में सनसनाहट,झनझनाहट,झुर -झुरी(ट्वीच -इंग ) होने लगती है ,पुतलियाँ तेज़ी से घूमने लगती हैं गर्दनके निचले आधार -भूत हिस्से में जुम्बिश,फड़- कन होने लगती है .इसी अवस्था में मरीज़ को प्रकाश और रंगों का मेला सा लगता दिखलाई देता है .एक विशेष प्रकार की गर्माहट उनके बदन में दौड़ने लगती है हाथ और दिमाग में एक अलग और अजीब किस्म का संवेदन और एहसास होने लगता है .हो सकता है तुरत प्रभाव के साथ कभी कभार ऐसा ना भी हो .लेकिन (ज़ारी )
अकसर यह होता है ।
और इसी दरमियान अप्रत्याशित तौर पर मरीजों को ऐसे रोगों से भी मुक्त होते देखा गया है जो अंतिम चरण तक पहुँच लाइलाज हो जातें हैं.चाहे फिर वह आर्थ -राय -टिस हो या पुराना जोड़ों का दर्द हो या देर तक बने रहने वाला कोई और दर्द ।सिर दर्द -आधी शीशी का पूरा यानी मी -ग्रीन .
होता यह है हमारा शरीर कुछ नै आवृत्तियों के साथ समस्वर हो जाता है स्पंदन करने लगता है ,बस एक अन्तर हम महसूस करने लगतें हैं ऊर्जा से भरने लगतें हैं जो यह तमाम आवृत्तियाँ समेटे हुएँ हैं .सारा खेल फोटों यानी क्वांटम ऑफ़ एनर्जी "एच न्यू "का ही तो है .यहाँ एच प्लांक्स कोंस -टेंट है ,न्यू फ्रीक्युवेंसी है ,"एच. न्यू "ऊर्जा का एक पैकिट है .बस हम खुद स्पन्दन हो जातें हैं .दी वाई -ब्रेसंस रजिस्टर एंड बिकम पार्ट ऑफ़ अस .हम सृष्टि की अपार ऊर्जा से असीम से ,जुड़ जातें हैं.हीलिंग बस एक संतुलन है जो कायम हो जाता इस विध .कैसे यह सब होता है ,पर्ल भी नहीं जानतें हैं .बस इस कुदरती दौलत (ऊर्जा )के धनीहैं पर्ल .पर्ल मात्र एक ज़रिया बनतें हैं इस संतुलन की प्राप्ति में .एक पाथ -वे मुहैया करवातें हैं रोगी -काया को .नीरोग कैसे हो जाती है काया ,तन और मन पर्ल भी नहीं जानते ।
हीलर इस प्रक्रिया में खुद भी लाभान्वित होता है .हीलिंग फ्रीक्युव्नेसीज़ उसे भी बराबर दुरुस्त रखने के लिए ज़रूरी ऊर्जा संतुलन बनाए रहने में मदद गार सिद्ध होतीं हैं .(समाप्त )

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