शनिवार, 23 अक्तूबर 2010

मलेरिया से मर रहा है ग्रामीण भारत .........

भारत ,युनाईतिदकिंडम और कनाडा के साइंसदानों की माने तो मलेरिया से ग्रामीण अंचल के लोग बगैर रोग निदान के घरों में ज्यादा मर रहें हैं .मरने वालों की संख्या विश्व -स्वास्थ्य -संगठन द्वारा सुझाए आंकड़ों से १३ गुना तथा मलेरिया उन्मूलन से जुड़े सेहत के झंडाबरदारों द्वारा ज़ारी आंकड़ों से २०० गुना ज्यादा है ।
इस नतीजे तक पहुँचने के लिए वर्बल ऑटोप्सीका सहारा लिया गया है .२००१ -२००३ में हुई १२२,००० लोगों की मौत की घर घर जाकर इस तरीके में पड़ताल की गई है .तीमारदारों से मौत से पहले मरने वाले के सारे लक्षणों (तेज़ ज्वर ,सर दर्द ,बदन दर्द ,शीत ,जूडी ,मलेरिया से जुड़े अन्य सिम्पटम्स का रिकार्ड बातचीत के आधार पर तैयार किया गया .गहन विश्लेसन के बाद ही मौत कासर्वाधिक संभावित कारण तय किया गया .बेहद के तेज़ ज्वर से मरने वाले ग्रामीण भाई अकसर गलत रोग निदान की वजह से मारे जातें हैं .सामुदायिक चिकित्सा केन्द्रों का नाकारा -पन (होना ना होना ) इसकी बड़ी वजह बनता है .बगैर रोग निदान के बंद घरों में रोगी प्राण छोड़ जाता है ।
एक दो नहीं ६६७१ जगहों पर (आंचलिक भारत के ) पर माहिरों की यह टीम पहुंची है ,तकलीफ उठाकर ।
अध्ययन "मिलियन डेथ स्टडी" का हिस्सा रहा है .सेम्पिल रजिस्ट्रेशन सिस्टम के तहत सभी मौतों की (२००१ -२०१३ ) पड़ताल की गई है .प्रोफ़ेसर प्रभात झा ने अन्य कई और माहिरों के साथ इस अध्ययन का संचालन किया है ।
अध्ययन के मुताबिक़ संशोधित आंकड़ों की माने तो दुनिया भर में दस लाख से ज्यादा नौनिहाल मलेरिया से मर रहें हैं इनमे से बहुलांश ५ बरस की आयु तक भी नहीं पहुँच पाताहै .
मजेदार बात यह है हमारा काबिल स्वास्थ्य मंत्रालय खुद आंकड़े न जुटा कर विश्व -स्वास्थ्य संगठन द्वारा ज़ारी आंकड़ों पर ही भरोसा करता है जो कई मर्तबा गलत भी होतें हैं (एच आई वी एड्स के मामले में ऐसा हो चुका है ।).

हकीकत यह है भारत में १-७० साला लोगों की कुल सालाना मौतों में मलेरिया की हिस्सेदारी ४% बनी हुई है .आबादी के आलोक में आप खुद हिसाब लगालें मरने वालों की संख्या इस चार फीसद के हिसाब से ही कितनी बैठती है ।
ग्लोबी स्तर पर दस लाख से ज्यादा लोग मलेरिया से मर जाते हैं .भूमंडलीय स्तर पर ही हर आधे मिनिट के बाद एक बच्चा मलेरिया के काम आ जाता है .मलेरिया पर सालाना २०००मिलियन डॉलर खर्च हो रहा है ।
बात साफ़ है :मच्छर भी रहेंगे मलेरिया भी ,महानगरों की कोख से पैदा गंदगी के टापू इसे हवा देते रहेंगे .और हम ऐसे ही विकास का ढोल पीटते रहेंगे .आर्थिक वृद्धि की दर मनमोहन के चिरकुट हाइप
करते रहेंगे ।
सन्दर्भ -सामिग्री :न्यू फिगर्स टेक मलेरिया टोल तो ओवर १० लाख (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,अक्टूबर २२ ,२०१० ,नै -दिल्ली संस्करण ,पृष्ठ १९ )./महा -मारी मलेरिया /सम्पादकीय ,नव भारत टाइम्स ,नै- दिल्ली,.अक्टूबर २२ ,२०१० बी)

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