सोमवार, 10 जनवरी 2011

संगीत की पुलक भी डोपामिन स्राव को प्रेरित करती है ....

हाई नोट :म्युज़िक थ्रिल्स ट्रिगर रिवार्ड केमिकल (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जनवरी १० ,२०११ पृष्ठ १७ )।
संगीत सुनकर जो लोग पुलकित हो उठतें हैं उल्लासोआनंद से भर उठतेहैं उनके दिमाग में एक न्यूरो -ट्रांसमीटर डोपामिन का स्राव होने लगता है नतीजा होता है वह ऐसे आनंदातिरेक में डूब जातें हैं जो अतिरिक्त धन की प्राप्ति ,पसंदीदा भोजन करने से या फिर साइको -एक्टिव ड्रग लेने से हासिल होता है ।
म्क्गिल यूनिवर्सिटी ,मोंट्रियल कैम्पस ,कनाडा ,के रिसर्च्दानों ने १९ -से २४ साला २१७ लोगों में से चुनकर ८ स्वयंसेवी नियुक्त किये .इन्होने संगीत सुनने के दौरान अतिरिक्त आननद का अनुभव किया .अब इन्हें एक पोज़ित्रोंन एमिशन टोमो -ग्रेफ़ी स्केनर में रखा गया .एक तेग्द केमिकल राक्लोप्रिदे को स्पोट किया इसने .यही रसायन दिमाग की कोशिकाओं में डोपामिन रिसेप्टर्स पर असर करता है .अब इन्हें एक सेंसर से भी जोड़ दिया गया .इनकी दिल की धड़कन (लुब डूब साउंड्स ),रेस्पिरेशन ,तापमान (बॉडी टेम्प्रेचर )और स्किन कन्दक्तेंस आदि मापा गया ।
अपना पसदीदा संगीत स्पाइन तिन्ग्लिंग म्युज़िक सुनने के दौरान स्वयं सेवियों ने अतिरिक्त भौतिक सक्रियता दिखलाई दी .दिमाग के स्ट्रियेतम हिस्से में डोपामिन का अतिरिक्त स्राव दर्ज़ हुआ ।
लेकिन न्यूट्रल संगीत सुनने के दौरान ऐसा कोई स्राव दर्ज़ नहीं हुआ ।
इसके बाद इन्हें एक फ्रीक्युवेंसी मेग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग स्केनर से दो चार किया गया .इसने दिमाग में फ्लोऑफ़ ब्लड का मानितरण किया ताकि यह जाना जा सके दिमाग का कौन सा हिस्सा ज्यादा सक्रिय हुआ है ।
ए पार्ट ऑफ़ दी स्ट्रियातम नॉन एज दी कौडैत वाज़ इन्वोल्व्द ड्यूरिंग दी एन्तिसिपेशन फेज़ .बट ड्यूरिंग दी पीक इमोशनल रेस्पोंस ए डिफरेंट स्ट्रियातम एरिया नॉन एज दी न्यूक्लियस एक्युम्बेंस वाज़ इन्वोल्व्द .दी रिज़ल्ट्स शेड लाईट ऑन दी एक्सक्लूसिव रिगार्ड देट ह्यूमेन हेव फॉर म्युज़िक ।
आखिर कोई तो वजह है लोग अपने पसंदीदा संगीत के दीवाने हो जातें हैं सब कुछ भूल जातें हैं ,वहां पहुँच जातें हैं जहां से उन्हें खुद अपनी खबर नहीं होती है .ज़ाहिर है ज़वाब एक ही है रिवार्ड सेंसेशन जो संगीत पैदा करता है ,आम संगीत नहीं पसंदीदा संगीत ।
बेशक डोपामिन एक ऐसा अर्वाचीन रसायन है जो मानवीय अस्तित्व के लिए ही ज़रूरी है और रहा है ,धन की प्राप्ति हो या खाद्य की अनुभूतिआनंद की यकसां होती है .फील गुड जोल्ट्स यही रसायन करवाता है .यही काम चंद दवाएं भी प्रेरित कर दिखातीं हैं .

2 टिप्‍पणियां:

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

इसीलिए तो मैं संगीत का दिवाना हूँ।

इस जानकारी के लिए हार्दिक आभार।
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virendra sharma ने कहा…

zanaab kisi n kisi cheez kee divaangee bhi zaroori hai .sangeet to paththar ko bhi pighlaa detaa hai .aap to gyaani guni aur samvedi ek saath sab hain .
veerubhai