रविवार, 16 जनवरी 2011

कविता :ठलुवा .

"ठलुवा "-नन्द मेहता वागीश ,१२१८ ,सेक्टर ४ ,अर्बन एस्टेट ,गुडगाँव ।
ये मुंबई नहीं बम्बई का ठलुवा है ,प्रगति की आड़ में ,परम्परा के विरुद्ध नंगेपन का जलवा है ।
इसका अज़ीज़ रिश्तेदार भारत धर्मी समाज पर ,बे -बुनियाद इलज़ाम लगाता है ,
तो फट अनशन पर बैठकर भारतद्रोहियों का मनोबल बढाता है ।
कल को बहुत संभव है कि ,शह पाकर ,रिश्तेदार ऐसा कर दे एलान ,
कि बहुसंख्यक लोग उसे देखने देते नहीं उसके हिस्से का आसमान ।
तो बिना कुछ समझे समझाए ,ये शख्श अनशन पर बैठ जाएगा ,
भारत को बदनाम करने का मौक़ा ,हाथ से नहीं गँवाएगा ।
आदमी गज़ब का है लफ्फाज़ ,इसके पास है हर सवाल का ज़वाब ,
अपनी धृष्ट - ता को देता है दृढ़ता करार ,
आँखें फाड़कर बोलने की बे -अदबी को करता है अपने रुतबे में शुमार ,
ऐसा करने का फ़न इसे रास आता है ,यही रूतबा है बस इतना ही आता है ।
इसलिए पत्थर बाजों के हक़ में यह तर्क जुटाता है । ।
अब जबकि घाटी के पत्थर बाजों का असली राज प्रोअब्दुल गनी बट ने किया है पर्दा फ़ाश ,
to bambai vaale ye to dekhen ,ki is secular mahaabhatt me ,
baaki kuchh bachaa hai sharm shaari kaa maaddaa ,
yaa fir naye tark jutaane ki dhrishtaa kaa hai iraadaa


प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )

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