सोमवार, 3 जनवरी 2011

गेस्ट आइटम :कविता .

समय स्वभावतय गतिशील रहा करता है ,प्रतिपल

जलता -बहता कलरव करता ,सदैव गतिमान रहा करता है अविरल ।

बहुरंगी बहुआयामी आह्लादित ,देता आया है संवेदन ,

समवेत चेतना का करता रहा सतत सृजन विसर्जन ।

समय अधिक सार्थक हो ,परिवर्तन लाता है अधुनातन ,

दिन को मॉस ,मॉस को वर्ष बनाता आया है नूतन ।

समय की आबद्ध अनुक्रमिमा में केवल "अब" अपना है ,

सतत प्रयासों से संजोयी संपदा ,क्षणभंगुर सपना है ।

नए वर्ष में ज्योतिर्मय हो ,अविनाशी अब को जाने ,

समग्र चेतना उद्भाषित कर ,सत -चित -आन्नद को पहचाने ।

बन नवयुग प्रहरी ,मानव जीवन के धुंधलके छांटें हम ,

नए वर्ष पर कुछ सुख अपना कुछ दुःख उनका बाँटें

रचना कार :श्री मुरारी लाल मुदगिल ,एन -५७७ ,जलवायु विहार ,नौएडा -२०१-३०१ .

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