गुरुवार, 6 जनवरी 2011

गेस्ट आइटम :"ग़ज़ल "

आईने की मार भी क्या मार है ,अक्स में उभरी सी एक दरार है ।
फूल जिसको आजतक बांटा किये ,
कर रहा मैसूद वापस हार है ।
पुख्ता वो मीनार जिसपे नाज़ था ,
ढह रही ज्यों रेत की दीवार है ।
खेल में तैरा किये ,कई समंदर ,
पार होना एक कतरा ,अब हुआ दुश्वार है ।
उम्र की तहरीर में जुड़ते थे साल ,
अब एक दिन जुड़ना हुआ मुहाल है .
गज़लकार :नन्द मेहता "वागीश ",मेहता सदन ,१२१८ ,सेकटर -४ ,अर्बन एस्टेट ,गुडगाँव -१२१ -००१ ।
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )।
मैसूद :मय सूद (विद इंटरेस्ट ,ब्याज सहित ).

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