बुधवार, 5 जनवरी 2011

कविता :"पर तुम्हें धिक्कार "-नन्द मेहता वागीश (गेस्ट कोलम ).

"पर तुम्हें धिक्कार "-नन्द मेहता वागीश .,१२१८ ,सेक्टर -४ अर्बन एस्टेट ,गुडगाँव-१२१-००१ ।
वतन और कौम पर भारी महाकलंक ,निरंतर झूंठ को फैला रहे ,निष्कंप ,
अखबार में सुर्खी बने ,चर्चा तो हो ,गज़ब कैसा तुम्हारा यह नया किरदार ।
धन्य थे पुरखे तुम्हारे ,पर तुम्हें धिक्कार ।
देखें हैं इस देश ने कई विषम ,गद्दार ,जेलों में बन्द हैं कई ,कुछ अभी फरार ,
इतिहास में भी दर्ज़ हैं ,कुछ नाम और भी ,पर तुम्हारे सामने ,बौने सभी लाचार ।
धन्य थे पुरखे तुम्हारे ,पर तुम्हें धिक्कार ।
तुम्हारी मानसिकता का घटित परिणाम ,बंटा भारत के जिससे ,था बना पाकिस्तान ,
उसी के वास्ते घर का शहतीर गिराते हो ,अब भी बाकी है कसर,हो तुम कैसे मक्कार ।
धन्य थे पुरखे तुम्हारे ,पर तुन्हें धिक्कार ।
चंद वोटों पर निगाहें ,तो कुछ बुरा नहीं ,यूं भी तलवे चाटना ,ज़िल्लत से कम नहीं ,
पर देश को बदनाम करते हो किसलिए ,रहे उगल विषगंध को ,है कौम शर्मशार ,
धन्य थे पुरखे तुम्हारे पर तुम्हें धिक्कार .

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