शुक्रवार, 7 जनवरी 2011

कविता :बहुत नहीं सिर्फ चार कौवे थे काले ....

कविता :'बहुत नहीं बस चार कौवे थे काले '-स्वर्गीय भवानी प्रसाद मिश्र .
बहुत नहीं सिर्फ चार कौवे थे काले ,कभी कभी जादू हो जाता दुनिया में ,
दुनिया भर के गुण दिखते औगुनियों में ,ये औगुनिए चार बड़े सरताज हो गए ,
इनके नौकर चील, गरुण और बाज़ हो गए ।
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )।
विशेष :आपातकाल के दौरान प्रकाशित हुई थी यह कविता .सन्दर्भ भी आपातकालीन कॉकस था .आज फिर वैसे ही दो कौवे मिल गए हैं .उन्हीं को समर्पित है यह कविता .

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