गुरुवार, 31 मार्च 2011

डज़ रेडियेशन फ्रॉम डेंटल एक्स -रेज़ कॉज़ थाइरोइड कैंसर ?

डज़ रेडियेशन फ्रॉम डेंटल एक्स्रेज़ कॉज़ थाइरोइड कैंसर ?(सी एन एन हेल्थ ,मार्च ३० ,२०११ )।
थाइरोइड ग्रंथि गर्दन के नीचे गले (थ्रोट )के सामने स्थित रहती है .इससे रिसने वाले हारमोन अपचयन (मेटाबोलिज्म )को नियंत्रित रखतें हैं ।
थाइरोइड का प्रकार्य (लो फंक्शन )मंद्धिम रहने पर वजन बढ़ने लगता है ,सुस्ती घेरे रहती है (भूख कम वजन ज्यादा -हाइपो -थाइरोइड )जबकि ओवर -एक्टिव थाइरोइड वेट लोस ,नर्वस नेस और कई दूसरे लक्षणों की वजह बन सकती है .(भूख ज्यादा वजन कम -हाई -पर -थाइरोइड )।
अमरीकी कैंसर सोसायटी के एक अनुमान के अनुसार २०१० में "थाइरोइड कैंसर "के कुल ४४,६७०नए मामले दर्ज़ हुए .(३३९३० औरतें ,१०७४० मर्द )।
कुल १६९० लोगों की इनमे से मौत हो गई (९६० औरतें ,७३० मर्द )।
तीन में से दो मामले इस कैंसर के दूसरे कैंसरों के बनिस्पत अपेक्षा -कृत युवा लोगों (२०-५५ साला )में मिलतें हैं .
हालिया बरसों मेंइस कैंसर की चपेट में आने के मौके बढ़ें हैं ।
१९८० में इस कैंसर के होने की दर औरतों में १९८० के ६ से बढ़कर प्रति एक लाख मामलों के पीछे १७ तथा मर्दों में २.५ से बढ़कर ५.८,सन २००७ के आते आते हो गई ।
अलबत्ता इससे मौत का ख़तरा उतना ही रहा है गत तीस सालों में .हालाकि औरतों में इसके होने की दर इस दरमियान तीन गुना ज़रूर हो गई लेकिन फिर भी यह दर लंग ,कोलन ,ब्रेस्ट ,प्रोस्टेट कैंसरों की दर से बहुत कम है। सर्वाइवल की दर इस कैंसर के साथ बहुत ज्यादा है .
इसकी वजह बेशक मेडिकल इमेजिंग के बढ़ते प्रयोग और नतीज़न होने वाले रोग निदान को समझा गया है ,गत तीस सालों में रोग निदान में केट स्केन्स ,एम् आर आईज ,थाइरोइड अल्ट्रा -साउंड का स्तेमाल होने से छोटी से छोटी थाइरोइड नोड्यूल्स(थाइरोइड गांठ )का भी अब पता चल जाता है ,इसलिए ज्यादा मामले दर्ज़ होतें हैं .मामले बढ़ने की वजह आकार में बड़े थाइरोइड त्युमर्स का मिलना रही है जिनके लिए सर्जिकल प्रोसीजर के तहत थाइरोइड को ही काट के फैंक देना पड़ता है ,अलबत्ता यह इक मुश्किल फैसला होता है थाइरोइड को कब कितना काटा जाए ।आंशिक या पूरा ।
बेशक रेडियेशन एक्सपोज़र थाइरोइड कैंसर के खतरे के वजन को बढाता है ,जितना ज्यादा एक्सपोज़र उतना ज्यादा संभावना इस कैंसर की बढती जाती है ,विकासमान (विकसती,बढती थाइरोइड ग्रंथि विकिरण के प्रति ज्यादा संवेदी होती है ज्यादा असर ग्रस्त होती है विकिरण से )इसीलिए बच्चों के लिए आगे चलकर इस कैंसर का जोखिम ज्यादा हो जाता है ,रेडियो -एक्टिव मेटीरियल के इन्जेशन के बाद खासकर रेडियो -एक्टिव आयोडीन को थाइरोइड आसानी से ज़ज्ब कर्लेती है ,एक्स रे मशीन से होने वाले बाहरी एक्सपोज़र से भी ऐसा ही असर पड़ता है ।
१९४५ -१९६३ तक अमरीकी ज़मीन के ऊपर (अबव ग्राउंड न्यूक्लीयर टेस्टिंग )एटमी परीक्षणों की खूब आज़माइश की गई थी .अमरीकी कैंसर सोसायटी ने इससे हमारी हवा -पानी में चले आये विकिरण और कैंसर की पूर्वापरता की पड़ताल की .पता चला कैंसर के बढे हुए मामलों का सम्बन्ध इस रेडियो -धर्मी विकिरण से नहीं था क्योंकि जो लोग इस कैंसर के बढ़ते मामलों से असर ग्रस्त हुए हैं उनमे से ज्यादातर लोग इन परीक्षणों पर रोक लगने के बाद ही पैदा हुए थे ।
डेंटल एक्स रेज़ से विकिरण की बहुत लो डोज़ ही मुह तक पहुँचती है ।
देयर इज सम स्केटर ऑफ़ रेडियेशन एंड दी पोटेंशियल फॉर सम रेडियेशन एब्ज़ोर्प्शन बाई दी नीयर बाई थाइरोइड एंड अदर ओर्गेंस .यानी कुल मिलाकर ना -मालूम सा प्रभाव .
धड़(टोर्सो ) को एक लेडिद एप्रन से ढकने से ,एक ले -डिड एप्रन पहनने से इस विकिरण से बचा जा सकता है .इससे छाती और उदर(चेस्ट एंड एब्दोमन )भी बचे रहतें हैं डेंटल एक्स रे लेते वक्त इसे पहना जाना चाहिए .ले -डिड थाइरोइड कोलर पहनने से थाइरोइड का भी बचाव हो जाएगा .बेशक डेंटल एक्सरेज़थाइरोइड कैंसर के खतरे को उतना नहीं बढा तें हैं जितना कि सी टी स्केनिंग्स जिसमे परम्परा गत एक्सरेज़ से ज्यादा विकिरण शरीर पर डाला जाता है .जो डेंटल एक्सरेज़ में स्तेमाल होने वाले विकिरण से बहुत ज्यादा डोज़ वाला है .

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