शुक्रवार, 25 मार्च 2011

सैलून्स और स्पाज़ से सेहत को होने वाली नुकसानी (ज़ारी ...)

इसका मतलब यह नहीं है कि निरापद "केमिकल -पील्स"हैं ही नहीं .लाईट पील्स हैं (ग्लाईकोलिक पील्स को लाईट पील्स में ही शुमार किया जाता है )लेकिन बात फिर वहीँ लौट आती है अनाड़ी के हाथ में पड़ने पर यह भी अर्थ का अनर्थ कर सकतें हैं .इविन ए लाईट पील कैन काज ए बेड रियक्शन इफ नोट डन प्रोपरली .
अलबत्ता इन लाईट पील्स में एल्फा -हाई -ड्रोक्सी - एसिड की हिस्सेदारी १०% से नीचे ही रहती है तथा पी एच मान भी इनका ऍफ़ डी ए की सिफारिशों के अनुरूप ३.५ ही रहता है ।
मीडियम और डीप पील्स का स्तेमाल सिर्फ और सिर्फ चर्म रोग के माहिर द्वारा ही किया जाना चाहिए .
ग्लाईकोलिक एसिड पील्स को कुछ मिनिटों के बाद उदासीन (न्युत्रेलाइज़ )करना ज़रूरी होता है ,न्युत्रेलाइज़िन्ग सोल्यूशन या पानीं से .यदि इन्हें देर तक ऐसे ही छोड़ दिया जाए तब चमड़ी झुलस जाती है .नतीजा होता है "ब्लिस्तार्स ",स्केब्स ,स्थाई ललाई (रेडनेस परमानेंट )।
बीटा -हाई -ड्रोक्सी -पील्स में भी अम्लीय अंश कम होना चाहिए (बेशक ये अपने से हीखुद -बा -खुद , न्युत्रेलाइज़ हो जातें हैं )और देर तक छोड़े जा सकतें हैं लेकिन अम्लीय अंश ज्यादा होने पर ये भी चमड़ी को झुलस सकतें हैं यही कहना है माहिरों का .

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