मंगलवार, 26 अप्रैल 2011

हाव विल माई एपिलेप्सी अफेक्ट मी ?

हाव विल माई एपिलेप्सी अफेक्ट मी ?
प्रत्येक व्यक्ति के लिए इसका अलग मतलब है .जैसे हर व्यक्ति अलग है ऐसे ही उसका रोग और उसकी वजहें अलग अलग हो सकतीं हैं .मसलन कुछ के लिए यह बचपन की एक अवस्था हो सकती है जो आगे चलके और भी बढ़ जाती है,बड़ी हो गई है . .कुछ लोगों को यह ज्यादा असर ग्रस्त कर सकती है ।
सीज़र्स का दौरे -दौरा इनके लिए ड्राइविंग ,कामकाज (धंधा -धौरी,वर्किंग ),सामाजिक अवसरों को हासिल करने के मौकों के भी आड़े आसकता है .इनके आत्म -सम्मान को भी ठेस पहुँच सकती है ।
लेकिन आप इसके प्रति अपना रवैया बदल सकतें हैं ।इसे एक चुनौती और अन्य रोग की तरह ही स्वीकृति देकर .
सही इलाज़ के जरिये आप अपनी जिन्द्ज़ी अपनी ढाल (अपने तरीके से )जी काट सकतें हैं .
सीज़र्स के ज्यादा तर मामले निपट लिए जाते हैं .काबू में आजातें हैं सीज़र्स .कुछ को पहला इलाज़ ही जादू सा असर करता है .सीज़र्स ऐसे जातें हैं जैसे गधे के सिर से सींग .
कुछ अन्य लोगों को अपने न्यूरोलोजिस्ट और एपिलेप्तो -लोजिस्ट के संग साथ सही दवा ,दवा मिश्र ,और खुराक तलाशनी होती है ।
कितने ही लोगों को दवा माफिक आतीं है रोग में आराम आता है .लेकिन कुछेक और को सीज़र्स के ख़ास स्रोत को शल्य द्वारा निकलवाना पड़ता है ।असल बात है चुनौती को स्वीकार करना ।
गिरतें हैं सह -सवार ही ,मैदाने जंग में ,वो तिफ्ल क्या जो रैंग कर घुटनों के बल चले .
सह -सवार :घोड़े की सवारी करने वाला ,अश्वारोही ,
तिफ्ल :जीव -आत्मा ?व्यक्ति
(ज़ारी...).

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