सोमवार, 18 अप्रैल 2011

टाक थिरेपी इन मेजर डिप्रेशन .

अवसाद ग्रस्त लोगों को टाक थिरेपी और किसी भी प्रकार के सलाह मशिविरे से फायदा पहुँच सकता है .ये इक जगह ऐसी होती है जहां व्यक्ति अपनी भावना और विचारों एहसासों की खुलकर अभिव्यक्ति करसकता है .कोंसेलिंग की एथिक्स में होता है उसकी बात उसके जीते जी किसी को भी नहीं बतलाई जाती .इसीलिए वह अपने भावनाओं के साथ तारतम्य बनाए रखना भी धीरे धीरे सीख सकता है ।
टाक थिरेपी में शुमार हैं :
(१)कोगनिटिव बिहेवियर थिरेपी :यह अवसाद ग्रस्त व्यक्ति को नकारात्मक विचारों से रू -बा -रू हो उन्हें रफा -दफा करना सिखलाती है .लोग अपने लक्षणों से वाकिफ होने लगतें हैं धीरे धीरे ही सही .

(२)साइको -थिरेपी :सलाह मश्बिरा क्लिनिकल कोंसेलर /साइको लोजिस्ट के साथ अवसाद ग्रस्त लोगों को अपने व्यवहार ,विचारों और खयालातों ,ज़ज्बातों को समझने में मदद करता है ।
(३)सपोर्ट ग्रुप :यह ऐसे व्यक्तियों का सम्मलेन होता है जो खुद भी अवसाद ग्रस्त होतें और इक दूसरे के अनुभवों एहसासों को परस्पर सांझा करते हैं .आपका कोंसेलर ,थिरेपिस्ट ऐसे लोगों का नाम और पता आपको दे सकता है ।
(ज़ारी...)

3 टिप्‍पणियां:

अनुनाद सिंह ने कहा…

गुरुदेव, ये मानसिक रोग बड़ी तेजी से भारत में फैल रहे हैं। इनसे लड़ने का संस्कार लोगों में बिलकुल नहीं है। परिस्थितियों ने आदमी को मशीन बना दिया है। उसका चिन्तन बहुत छिछला हो गया है। जीवन में एक ही चीज का उसको सबसे अधिक अनुभव होता है - 'भ्रष्टाचार' ।

virendra sharma ने कहा…

lekin dost maansik rogon kee vajah bhrshtaachaar nahi hai ,naa hi maansik rog bhrshtaachaar ko badhaa rahen hain .
albattaa maahaul kaa asar to hotaa hai "Nature and Nurture both play a role ."
shukriyaa aapki keemti raay aur vakt kaa jo aapne blog par aane ke liye nikaalaa bhi bitaayaa bhi .
veerubhai

virendra sharma ने कहा…

lekin dost maansik rogon kee vajah bhrshtaachaar nahi hai ,naa hi maansik rog bhrshtaachaar ko badhaa rahen hain .
albattaa maahaul kaa asar to hotaa hai "Nature and Nurture both play a role ."
shukriyaa aapki keemti raay aur vakt kaa jo aapne blog par aane ke liye nikaalaa bhi bitaayaa bhi .
veerubhai