रविवार, 24 अप्रैल 2011

प्यार या आकर्षण ?-निवेदिताजी की कविता पर एक प्रतिक्रया . .

प्यार या आकर्षण -निवेदिता जी की कविता ने प्रतिक्रिया लिखने को मजबूर किया -टिपण्णी में हिंदी में नहीं कर पाता इसीलिए अपने ब्लॉग पर कर रहा हूँ -



ये प्यार है या आकर्षण .....निवेदिताजी की कविता है ।
उसी पर एक प्रतिक्रया दे रहा हूँ -
प्यार !हाँ प्यार ,बस प्यार ही तो गूंगे के गुड सा है -
कबीर के निर्गुनिया ब्रह्म सा है -
जो भी है -एक एहसास का अतिक्रमण करता इन्वोलंतरी एक्शन सा है प्यार -
साँसों की एक ऐसी धौंकनी सा जिसकी सांस कोई भी अपनी नहीं ,
दिल की लुब डूब साउंड सा प्यार ही तो है वो -
जब खून आशिक का और हीमोग्लोबिन माशूक सा -
और लस्ट एग स्क्र्मबल्ड सा -
फोड़े जा चुके अंधे के खोल सा -
आकर्षण पल्लवित हो सकता है -
बूढ़े बरगद सा जिसकी शाखाएं ,प्रशाखाएं फिर से एक और पेड़ बनने लगतीं हैं ।
पर प्रेम तो हो .

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