सोमवार, 18 अप्रैल 2011

त्र्रेट -मेंट फॉर मेजर डिप्रेसइव डिस -ऑर्डर .

मेजर- अवसाद(मेजर डिप्रेशन ) में दवाएं :
अवसाद के प्रबंधन में स्तेमाल किये जाने वाली दवाओं को अवसाद -रोधी (एंटी -डिप्रेसेंट्स )कहा जाता है .ज्यादातर लोगों को एंटी -डिप्रेसेंट ड्रग थिरेपी तथा साइको -थिरेपी से आराम आजाता है .जैसे जैसे इलाज़ असर के साथ आगे बढ़ता है मरीज़ का नकारात्मक सोच भी कम होता जाता है ।
अकसर जिन अवसाद रोधी दवाओं का स्तेमाल किया जा सकता है उनके नाम गिनाये जा सकतें हैं :
(१)सलेक -टिव सेरो -टो -निन-री -अप -टेक इन -हिबी-टार्स का व्यापक रूप से स्तेमाल किया जाता है इनमे नाम लिया जा सकता है -फ्ल्युक्से-टिन(प्रोजक ),सर -ट्रा-लिन(ज़ोलोफ्ट ),परोक्से-टिन (पक्सिल )सिटालो -प्राम(सेलेक्सा )तथा एस्सी-टालो -प्राम (लेक्सा -प्रो )।
(२)सेरो -टो -निन -नोर -एपी -नेफ्रिन री -अप -टेक इन -ही -बी -टार्स (एसएनआरआईज ):इनमे नाम गिनाया जासकता है ,डेस्वेंलाफक्सइन (प्रिसतिक ),वैन -लाफेक्स -इन (एफ्फेक्सोर )तथा द्युलोक्सी -टिन (सिम -बाल्टा)का ।
(३)अन्य दवाओं में शामिल हैं ,"ट्राई -साईं -क्लिक एंटी -डिप्रेसेंट्स ,बू- प्रोपिओन(वेल्ब्युट -रिन),तथा मोनो -अमीन- ओक्सिडेज़ इन -ही -बी -टार्स ।
(४)सीवियर डिप्रेशन की स्थिति में "साईं -कोटिक "फीचर्स मिलने पर (यथा हेलुसिनेससं या दिल्युज़ंस की उपस्थिति में ही )एंटी -साईं -कोटिक दवाओं का स्तेमाल किया जाता है ।
कुछ लोगों को चंद हफ़्तों में ही एंटी -डिप्रेसेंट्स से काफी आराम आजाता है राहत मिलती है लक्षणों में लेकिन कुछेक को ४-९ महीने का वक्त लग जाता है ,फुल रेस्पोंस मिलते मिलते .ताकि अवसाद के लक्षण लौट लौट के न उपस्थित हो सकें ।
कुछ और लोग ऐसे भी मिलतें हैं जिन्हें एंटी -डिप्रेसेंट्स की रूटीन खुराक ,"टाल्क -थिरेपी" के संग साथ मिलने पर भी राहत मिलते दिखलाई नहीं देती .ये "ट्रीट -मेंट- रेजिस्टेंस- डिप्रेशन" के मामले(केसिज ) में गिने जातें हैं .
इनके साथ "कोम्बो -मेडिसंस"(एक से ज्यादा मिश्र दवाएं )हा -यर लेकिन सुरक्षित मात्रा (दोज़िज़ )में ही दी जातीं हैं .'
एंटी -डिप्रेसेंट्स की कारगरता को बढाने के लिए इनके संग संग "लीथियम "तथा थाइरोइड हारमोन सम्पूरकों को भी आजमाया जाता है ।
गर्भवती महिलाओं को या जो संतान चाह रहीं हैं एंटी -डिप्रेसेंट्स दवाएं बंद करने का फैसला खुद नहीं ले लेना चाहिए .अपने चिकित्सक के परामर्श से ही ऐसा कोई कदम उठाना चाहिए ।
विशेष :युव -जनों पर (१८-२४ साला )चिकित्सा आरम्भ होने के शुरूआती महीनों में खासकर नजर रखनी चाहिए .देखना चाहिए कहीं इनमे आत्म - ह्त्या के चिन्ह (आसार )तो नहीं हैं ?जो लोग किसी और मेडिकल कंडीशन के लिए भी दवा लेते रहें हैं उन्हें अपने काया -चिकित्सक और मनो -रोग के माहिरों को ज़रूर इनके बारे में बताना चाहिए क्योंकि कुछ दवाओं के संग साथ एंटी -डिप्रेसेंट दवाएं उतनी कारगर सिद्ध नहीं होतीं .इनकी असर -कारिता (प्रभ -विष्णुता )कमतर हो सकती है .
(ज़ारी ...)

(आगे चर्चा करेंगे टाक- थिरेपी की ......)

कोई टिप्पणी नहीं: