रविवार, 24 अप्रैल 2011

हिस्टीरिया (ज़ारी...).

गत पोस्ट से आगे .......गत पोस्ट में ग्रस्त को "फ्रास्ट "लिखा गया ,तथा महारथ को "काहरत",कई मर्तबा एडिटिंग अनजाने ही छूट जाती है ,लेखन में उत्तेजना आने की वजह से होता है यह सब .खेद व्यक्त करता हूँ -वीरुभाई ।
बीसवीं शती :
बीसवीं -शती के आने के बाद हिस्टीरिया के डायग्नोज़ड मामलों में कमी आती चली गई ,आज इसे इक मान्यता प्राप्त रोग का दर्जा भी हासिल नहीं है ।
शायद इसकी एक वजह आम आदमी की समझ बूझ में "कन्वर्शन डिस -ऑर्डर्स" का आना है ,इसके मनो वैज्ञानिक पहलू से लोग वाकिफ होने लगें हैं .ध्यान रहे -हिस्टीरिया को अब एक "कन्वर्शन -डिस -ऑर्डर्स "में से एक विकार ही माना जाता है .
डायग्नोज़ करने के लिए उपकरण भी अब बे -तरह उपलब्ध हैं जो हिस्टीरिया (कन्वर्शन डिस -ऑर्डर )को एपिलेप्सी से अलग कर देतें हैं ।
ईईसी (इलेक्ट्रो -एनसी -फेलो -ग्रेफ़ी ,दिमागी बिजली का आरेख ,आकस्मिक विद्युत् -विसर्जन का रिकार्ड ,एनसी -फेलो -ग्राम ) ने इस भ्रम को हटाया है .भाई साहिब मिर्गी का दौरा ,हिस्टीरिया ,एपिलेप्सी (अपस्मार )सब अलग अलग हैं ,उनकी चर्चा आगे के आलेखों ,पोस्टों में की जायेगी )।
सिगमंड फ्रायड ने हिस्टीरिया के अनेक भ्रमित करने वाले प्रकट रूपों को अपने पुनर -वर्गीकरण में -एन्ग्जायती -न्यू -रोसिस ही कहा है हिस्टीरिया नहीं ।
बेशक आज भी हिस्टीरिया बह -रुपिये की तरह दूसरे मनो -रोगों के प्रकट लक्षण के रूप में हाज़िर हो सकता है -शिजो-फ्रेनिया में ,कन्वर्शन डिस -ऑर्डर में ,एन्ग्जायती अटेक्स में .
कई मनो -रोग -चिकित्सक (मैं इन्हें और ऐसों को मनोरोगिये बोलता समझता हूँ ) हिस्टीरिया बतला कर मनो -रोगी को आते ही बिजली लगा देतें हैं (इलेक्ट्रो -कन्वल्शन -थिरेपी ,बिजली के हलके झटके ,माइक्रो -लेविल करेम्ट्स लगातें हैं दिमाग में इलेक्ट्रोड लगाकर ,बिना एनस-थीज़िया दिए ,जबकि मोडी -फाइड-ई सी टी ही इस दौर में दिया जाता है ,मान्य है .).अच्छे पैसे बनतें हैं इनके ,आज भी लोग "कन्वर्शन -डिस -ऑर्डर "को दैवीय प्रकोप /ओपरा /ऊपर की हवा /भूत -भूतनी का मरीज़ के सिर चढ़ के बोलना ,दैवी का आना और पता नहीं क्या क्या बोलेतें हैं , जबकि यह एक मेडिकल कंडीशन हैं जिसका बा -कायदा इलाज़ होना चाहिए ।
(ज़ारी ...)

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