सोमवार, 25 अप्रैल 2011

इज हिस्टीरिया रीअल ?ब्रेन इमेज़िज़ से यस .

इज हिस्टीरिया रीअल ? ब्रेन इमेज़िज़ सेज यस .
हिस्टीरिया इज ए ४,०००-इयर ओल्ड डायग्नोसिस देट हेज़ बीन एप्लाइड टू नो मीन परेड ऑफ़ विचिज़ ,सेंट्स एंड ऑफ़ कोर्स ,अन्ना ओ ।
गत ४ ,००० सालों से काबिज़ है ये रोग और इसका रोग निदान ,सिर्फ भूत प्रेत और संतों ,दुष्टों का मेला, आना जाना नहीं है।
लेकिन सच यह भी है पिछले ५० बरसों में यह शब्द प्रयोग "हिस्टीरिया "कमतर होता चला गया है ।
१९६० के दशक से ही इसकी शुरुआत हो गई थी . जबकि विक्टोरिया युग में हर रोग में ये चला आता था इसके लक्षण फिट हो जाते थे ।
उन्नीसवीं शती की यह एक फ़िज़ूल बेमानी निरर्थक बातलगने लगी थी . केवल साहित्य सम्बन्धी विश्लेषण भर के लिए , इसकी उपयोगिता शेष रह गई थी .समसामयिक विज्ञान की सरहदों से इसे देश निकाला दे दिया गया था .विज्ञान के दायरे के लिए यह एक बे -मानी शब्द रह गया था ।
इसे औरतों की हेटी करने वाला उनकी सेक्स ओब्जेक्ट के रूप में साख को गिराने वाला एक गंदा लफ्ज़ माना जाने लगा ,फ्रायड की दिमागी खपत भी जिसने इसे सिद्धान्तिक जामा पहनाया था .
मोर देन वन डॉ .हेज़ काल्ड इट "दी डायग्नोसिस देट डे-यर नोट स्पीक इट्स नेम ".
अब तक दिमागी साइंस और साइंसदानों ने भी ,ब्रेन साइंस ,ब्रेन केमिस्ट्री ने भीहिस्टीरिया के रोग निदान को भी कोई तवज्जो नहीं दी थी .सच बात तो यह थी इधर ध्यान ही नहीं दिया गया ।
बीसवीं शती के तकरीबन पूरे दौर में इस रोग के स्नायुविक रोग वैज्ञानिक (न्युरोलोजिकल बेसिस ) आधार का अन्वेषण ही नहीं किया गया .अवहेलना की गई इसकी ।
दिमागी रोग निदानिक सहूलियतों ,डायग्नोस्टिक टूल्स के आने के साथ ही इस स्थिति में कुछ फर्क दिखलाई दिया है .बेशक अब दिमाग की कार्य प्रणाली को देखा परखा जा सकता है ,कौन सा हिस्सा क्या कर रहा है इसकी इमेजिंग की जासकती है .अब हालात बदलने लगें हैं हिस्टीरिया के प्रति नज़रिया भी ।
अब दिमागी गतिविधियों में आने वाले बदलावों की टोह लेने के लिए "फंक्शनल न्यूरो -इमेजिंग टेक्नोलोजीज (सिंगिल फोटोन एमिशन कप्यूट -राइज्द टोमो -ग्रेफ़ी यानी एस.पी. ई. सी .टी .स्पेक्ट तथा पोज़ी -ट्रोंन एमिशन टोमो -ग्रेफ़ी या पी ई टी यानी पेट )के आने से साइंसदान दिमाग में होने वाले सक्रिय बदलावों को लगातार मोनिटर करतें हैं .
बेशक उस ब्रेन मिकेनिज्म को अभी भी समझना बाकी है जो हिस्टीरिया जैसी बीमारी की ठीक ठीक वजह बनती है लेकिन अब कायिक साक्षी हाथ आने की उम्मीद पैदा हुई है उस रोग के बारे में जो सदियों से रहस्य के परदे में रहा है तथा जो न्यूट्रिनो की तरह होली ग्रेल ऑफ़ मेडिसन ही रहा है ,वजहें जिसकी बूझी नहीं जा सकीं हैं .नए अध्ययन भौतिक प्रमाण जुटा रहें हैं ."न्यू स्टडीज़ हेव स्टार्तिद टू ब्रिंग दी माइंड बेक इनटू दी बॉडी ."
(ज़ारी ...).

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