मंगलवार, 24 मई 2011

"आदमी कोई बद नहीं होता ...."

आदमी कोई बद नहीं होता .और आदमी आदमी के बीच का रिश्ता ज़ज्बात का होता है .फर्क हमें इसलिए छोटे बड़े का महसूस होता है हम अलग अलग सीढ़ियों पर खड़े एक दूसरे से संवाद करतें हैं .ऊंची सीढ़ी पे खड़े होकर हम किसी को देखते हैं तो वह हमें हेयतुच्छ अपने से छोटा नजर आता है .याद रखिये परमात्मा ने सबको सम पर खडा किया हुआ है हम सोचते सोचते कब डेट -रोइट मेट्रो (वेंन - काउंटी )के हवाई अड्डे पे आगयेथे पता ही नहीं चला .बेटी हमारा इंतज़ार यात्री लोंज़ में मय हमारे दामाद के कर रही थी ।
अचानक वही विमान -परिचारिका सामने से प्रवेश कर रही थी अपने माल - असबाब के साथ .हमने उसे एक बार फिर झुककर आदाब किया और वह हमारी बिटिया से रु -बा -रु थी "योर फादर इज सच ए नाइस पर्सन ।".
हमने सारा किस्सा अपनी बिटिया को बतायाथा . आप भी जानिएगा क्या हुआ था उस "के एल एम् "ओप्रेटिद बाई "डेल्टा फ्लाईट नंबर ६०५१ "में जो एम्सतर्दम से उड़कर हमें डेट -रोइट ला रही थी .पूर्व का सफ़र मुंबई से अबुधावी फ्लाईट जेट एयरवेज़ फ्लाईट ५८४ तथा अबुधावी से एम्स्तार्दम के एल एम फ्लाईट ४५० तकरीबन तकरीबन घटना हीन था . अलबत्ता सफ़र की थकान थी जो इस घटना के बाद और भी बढ़ गई थी .मन विषाद ग्रस्त था. ऐसा होता है तो आखिर होता क्यों है ?
गलती आदमी से ही होती है और यह तो गलती भी नहीं आकस्मिक चूक थी .हो सकता है उम्र का तकाजा हो . कोई और उधेड़ बुन रही हो दिलो -दिमाग में उस विमान परिचारिका।
अरे बस इतना ही तो हुआ था -यह उम्र दराज़ एयर -होस्टेस ट्राली संग आगे बढ़ रही थी .दिस्पोज़ेबिल ग्लास में कोक उसने उड़ेंल रखा था उस गोरे को पकड़ा ही रही थी ,आगे रखी एक और बोतल ढुलक गई ,ग्लास से टकराई और कोक विमान यात्री के कपड़ों पर खिंड -बिखर गया .
वह शर्मिन्दा थी .दौड़ कर बहुत से पेपर नेपकिन केबिन से लाइ थी और उसका पुल ओवर साफ़ किया था .फिर पुल ओवर ही उतरवा कर किचिन केबिन में ले गई थी .इस बीच सफ़ेद शफफाक कई तौलिये भी वह निकाल लाई थी .
पर वह शांत नहीं हुआ था .उत्तेजित था उसे खरी खोटी सुनाये जाए था ।
विमान के कई
वरिष्ठ कर्मियों ने भी आकर उसे समझाया था ,शांत करने ,संतुष्ट करने की कोशिश की थी ,कुछ मुआवज़े की भी शायद बात हुई थी .लेकिन वह अकडा रहा था जैसे पानी में भीगने के बाद चमडा अकड़ जाता है .
शिकायत -पुस्तिका मंगवाई थी और उसमें अपनी लिखित शिकायत दर्ज करवाई थी ।
सारा झगडा शब्दों का होता है शब्द संघातक हो जातें हैं .तमाम ज़िन्दगी शब्दों से चलती है सब शब्दों का ही खेल है फिर भी आदमी शब्दों के अर्थ बांचना नहीं चाहता ,रहता है अपनी झोंक में यही सोचता हुआ मैं केबिन में चला आया था ।
उस विमान परिचारिका की आंखोंमे आँसु छलक आये थे आहिस्ता से उसने मेरा हाथ पकड़ा था और अपने सीने से लगा लिया था कहते हुए -गोड ब्लेस यु .मैंने बस इतना कहाथा -"सच थिंग्स डू हेपिंन इन ए लॉन्ग केरियर.गले मत लगाओ इस बात को .तकलीफ बढ़ जायेगी ।".
सांत्वना के दो बोल उसे ऐसे लगे मानों सीने में घोंपा कोई शब्द बाण हमने निकाल बाहर किया हो .स्नेह की आंच से वह आप्लावित थी .कृतिग्य भी .नारी की कोमलता उस क्षण रिसकर सारी केबिन में फ़ैल गई थी .
मैं सोच रहा था यह आदमी अमरीकी तो नहीं ही था ,गोरा था किसी और लोक का ,अमरीकी नरम होते हैं सोफ्ट टॉय से, अदबियत लिए होतें हैं लखनवी ।
(ज़ारी ...)
म फ्लाईट ४५०

3 टिप्‍पणियां:

SANDEEP PANWAR ने कहा…

आपकी पोस्ट सच्ची मगर जोरदार लगी,

Dr Ved Parkash Sheoran ने कहा…

हो जाती हैं गल्ती अकसर नादानी में
घाव कहां भर पाते हैं दिए हुए नादानी में

virendra sharma ने कहा…

ज़नाब वेदप्रकाशजी ,संदीप पंवारजी,अहो भाग हमारे !जो आप पधारे !शुक्रिया !