रविवार, 28 जुलाई 2013

कर्मों का खाता (karmik accounts) (भाग तीन)

कर्मों का खाता (karmik accounts) (भाग तीन)

संगम पर बाप आकर बच्चों को ऊंचे ते ऊंचा कर्म कैसे किया जाए 

,समझाते हैं। अ-कर्म जिनका आगे हिसाब किताब नहीं बनता करने की 

विधि समझाते हैं। अब हम बच्चों को उसे एक मेथड एक प्रोद्योगिकी में 

खुद ही बदलना है निरंतर प्रयत्न से पुरुषार्थ से।कर्म और योग का संतुलन 

बनाए रखना है। 

कुछ लोग परोपकार ,लोकहितार्थ किए कार्यों योगदान को ही योग कहते 

बूझते और मानते हैं। वह समझते हैं योग कर्म से ही है ,कर्म को ही योग 

मानते

 हैं  कुछ लोग।  

कर्म योगी का मतलब है एक पल में कर्म करना दूसरे ही पल ही फिर कर्म 

से डीटेच  भी 

हो जाना अशरीर हो जाना अपने मूल  स्वरूप में स्थित हो जाना (कर्म 

करने 

वाली आत्मा बन जाना। ).साक्षी भाव से देखना कर्म कर कौन  रहा है.

इस ड्रिल में तुम्हें कर्म करते करते कर्म से ही उपराम हो जाना है। भूल 

जाना है उस कर्म को ही। उस क्रिया को ही। कर सकोगे तुम ऐसा या उस 

कर्म को अपने चित्त में भी ले आओगे बनाए रहोगे  ?

एक पलांश में कर्म विस्तार का लोप हो जाए सिर्फ तुम्हारा आत्म स्वरूप"

 मैं 

शान्ति स्वरूप ,प्रेम स्वरूप ,आनंद स्वरूप आत्मा हूँ" ,शेष रह जाए। 

कर्म योगी वह है जो कर्मों  से एक सम्बन्ध बनाता है।इसमें मन और बुद्धि 

और 

संस्कार सहयोगी बनें। तभी कर्म से अलग 

 खड़े होकर निर्लिप्त निरपेक्ष  होकर कर्म -प्रेमी बन सकोगे। अपनी संप्रभु 

स्थिति से कर्मेन्द्रियों ज्ञानेन्द्रियों पर पूर्ण मालिकाना भाव रखते हुए हर 

प्रकार के बाहरी प्रभाव से मुक्त हो कर्म करना है। 

हमारे विचार बनते हैं कर्मों के बीज। मन (विचार )बाहर दृश्य जगत से 

आता है आँख और कान से होकर आता है अन्दर तो चित्त होता है। हमारी 

वाणी ,हमारे बोल (वचन ) और क्रिया (एक्शन )हमारे कर्मों का ही विस्तार 

होतें हैं। 

बुद्धि का निर्मल पात्र विचार को  परखे जैसे पारस पत्थर जांच करता है 

खरेऔर खोट मिले सोने की फिर एक शुद्ध चित्त ,अन्तश्चेतना  एक 

आंतरिक- कर्म, बुद्धि बन जाती है बाहर के एक्शन की। अब मन  जो बाहर 

से 

आता है ,कर्म और वचन में. एक समस्वरता एक हार्मनी बन जाती है। अब 

कर्म श्रेष्ठ बनता है आप श्रेश्ठाचारी बन जाते हैं कर्म बंधन से मुक्त रहते 

हैं। कर्म अकर्म बन जाता है। जिसका आगे कोई फल भोग नहीं बनता है। 

कर्म की डोर विचार से बंधी है चेक नहीं करोगे विचार को तो कर्म बन्ध में 

आ जाओगे।

फस्ट देयर इस ए थाट देन इज एक्शन। 

इस चेकिंग ड्रिल का अभ्यास कैसे करें ? 

शुद्ध संकल्प के साथ आज़माइश करके देखो। 

एक्सपेरिमेंट करके देखो। अब जो सोचते ही वह संपन्न होता साफ़ 

दिखलाई देगा (देता है)। अपने और अपने संबंधों पर इसे आजमा के तो 

देखो।शुद्ध संकल्प की डबल पावर प्रेम से संसिक्त हो माया रावण (विकारों 

)को पटकनी मारेगी। तुम्हारा हर कर्म अब शान्ति और सुख का मार्ग 

प्रशस्त  करेगा।  यही कर्म के साथ सम्बन्ध की प्राप्ति है सहज अनुभूति 

है। 

कर्म के साथ जो सम्बन्ध में रहता है वह फल के प्रभाव में न आकर उसका 

मास्टर क्रियेटर बनता है।सहयोगी बनता है कर्म का। अब कर्म करते न 

फल की चिंता रहती है न ज्ञानेन्द्रियों पर बाहरी प्रभावों का असर पड़ता है न 

हद की इच्छाओं का आकर्षण ही रहता है  .आप डीटेच खड़े रहते हो कर्म से। 

आत्मा कर्म फल का  सर्वर (सेवक ,मातहत )नहीं है मालिक है। वह तो 

कर्म के 

संपन्न होने में मददगार की भूमिका में है। सम्बन्धी है कर्म का। 

सारा दारोमदार इस ड्रिल की कामयाबी का विचार की शुद्धता पर आ पड़ता 

है। कर्मों का परिणाम (किसी भी घटना का होना )इसी शुद्धता का 

प्रतिफलन है प्रतिबिबन  है यथार्थ का। 

बेशक हमारी कर्मेन्द्रियाँ ,ज्ञानेन्द्रियाँ मन बुद्धि संस्कार कर्म के 

अल्पकालिक सुख देने वाले फल के व्यायामोह में आते ज़रूर हैं। लेकिन 

कीमत भी इसी की कर्म बंध के रूप में भारी चुकानी पड़ती है। कर्मों से

 हमारा आत्मिक मददगार का सम्बन्ध टूट जाता है। कर्म ही हमारा 

अपहरण कर लेते हैं दास बना लेते हैं हमारी आत्मा को हद की सुख की 

फल प्राप्त वाले कर्म। 

ध्यान रहे आँखों का काम देखना है लेकिन देख कौन रहा है वास्तव में ?

याद रहे देखने वाली मैं आत्मा हूँ शरीर नहीं देखता है आँखें तो तब भी 

अपना वजूद बनाए रहतीं हैं जब आत्मा शरीर छोड़ जाती है। लेकिन देखतीं 

हैं क्या तब भी ? 

ॐ शान्ति। 

Posted: 26 Jul 2013 10:39 PM PDT
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English Murli

Essence: Sweet children, forget everything including your bodies and become complete beggars. Connect your intellects in yoga to the land of Shiva and the land of Vishnu.
Question: In which aspect do you children have to become generous hearted like the Father?
Answer: Just as Baba becomes generous hearted and takes everything worth straws from you and gives you the sovereignty of the world, in the same way, you too have to become generous hearted. Open Godly universities everywhere. If even three or four people claim a good status, that is great fortune. Become worthy and reveal the Satguru. Never ask anyone for money.
Song: Do not forget the days of your childhood.
Essence for dharna:
1. Don’t be attracted to anything. Remain soul conscious. Always wear the armour of remembrance.
2. Conquer sleep and remember the Father in every breath. Churn knowledge and accumulate an income. Use the churning stick of the intellect.
Blessing: May you be an image that grants blessings and become equal to the Father and give everyone a blessing through your perfect form.
In Bharat, goddesses are specially remembered as the goddesses that grant blessings. However, only those who become equal to the Father and remain close become such images that grant blessings. If you are sometimes equal to the Father and not equal to the Father at other times, then, because you are still an effort-maker for yourself, you cannot become an image that grants blessings because the Father does not make effort. He is constantly a perfect image. So, when you become equal, that is, when you stay in your perfect form, you will then be said to be an image that grants blessings.
Slogan: Run fast in the race of remembrance and you will become a garland around the Father’s neck and a bead of the rosary of victory.

Hindi Murli

मुरली सार:- ”मीठे बच्चे – देह सहित सब कुछ भूल पूरा बेगर बनो, शिवपुरी और विष्णुपुरी से अपना बुद्धियोग लगाओ”
प्रश्न:- किस बात में तुम बच्चों को बाप समान फ्राकदिल बनना है?
उत्तर:- जैसे बाबा फ्राकदिल बन तुम बच्चों से कखपन ले तुम्हें विश्व की बादशाही देते हैं। ऐसे तुम्हें भी फ्राकदिल बनना है। जगह-जगह पर गाडली युनिवर्सिटी खोल दो। 3-4 ने भी अच्छा पद पाया तो अहो सौभाग्य। सपूत बन सतगुरू का शो करो। कभी भी किसी से पैसा आदि नहीं मांगो।
गीत:- बचपन के दिन भुला न देना……
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) किसी भी चीज़ में आसक्ति नहीं रखनी है। देही-अभिमानी होकर रहना है। याद का कवच सदा पहनकर रखना है।
2) नींद को जीत श्वाँसों श्वाँस बाप को याद करना है, ज्ञान का सिमरण कर कमाई जमा करनी है। बुद्धि की मथानी चलानी है।
वरदान:- सदा बाप समान बन अपने सम्पन्न स्वरूप द्वारा सर्व को वरदान देने वाले वरदानी मूर्त भव
भारत में विशेष देवियों को वरदानी के रूप में याद करते हैं। लेकिन ऐसे वरदानी मूर्त वही बनते हैं जो बाप के समान और समीप रहने वाले हों। अगर कभी बाप समान और कभी बाप समान नहीं लेकिन स्वयं के पुरुषार्थी हैं तो वरदानी नहीं बन सकते क्योंकि बाप पुरुषार्थ नहीं करता वो सदा सम्पन्न स्वरूप में है। तो जब समान अर्थात् सम्पन्न स्वरूप में रहो तब कहेंगे वरदानी मूर्त।
स्लोगन:- याद की तीव्र दौड़ी लगाओ तो बाप के गले का हार, विजयी मणके बन जायेंगे।

Hinglish Murli

Murli Saar : – ” Mithe Bacche – Deh Sahit Sab Kuch Bhul Pura Beggar Banno, Shivpuri Aur Vishnupuri Se Apna Buddhi Lagao”
Prashna : – Kis Baat Mei Tum Baccho Ko Baap Saman Farakdil Bannna Hai ?
Uttar : – Jaise Baba Farakdil Ban Tum Baccho Se Kakhpan Le Tumhe Vishva Ki Baadshahi Dete Hai. Aise Tumhe Bhi Farakdil Bannna Hai. Jagah – Jagah Par Godly University Khol Do. 3 – 4 Ne Bhi Acha Pad Paya Toh Aho Saubhagya. Saput Ban Satguru Ka Show Karo. Kabhi Bhi Kisi Se Paisa Aadi Nahi Mango.
Geet : – Bachpan Ke Din Bhula Na Dena. .. .. .
Dharan Ke Liye Mukhya Saar : -
1 ) Kisi Bhi chees Mei Aasakti Nahi Rakhni Hai. Dehi – Ahimani Hokar Rehna Hai. Yaad Ka Kavach Sada Pehenkar Rakhna Hai.
2 ) Nind Ko Jeet Swanson Swans Baap Ko Yaad Karna Hai, Gyaan Ka Simran Kar Kamayi Jama Karni Hai. Buddhi Ki Mathani Chalani Hai.
Vardan : – Sada Baap Saman Ban Apne Sampann Swarup Dwara Sarva Ko Vardan Dene Wale Vardani Murat Bhav
Bharat Mei Vishesh Deviyon Ko Vardani Ke Rup Mei Yaad Karte Hai. Lekin Aise Vardani Murat Vahi Bante Hai Jho Baap Ke Saman Aur Sameep Rahne Wale Ho. Agar Kabhi Baap Saman Aur Kabhi Baap Saman Nahi Lekin Swayam Ke Purusharthi Hai Toh Vardani Nahi Ban Sakte Kyunki Baap Pursharth Nahi Karta Vo Sada Sampann Swarup Mei Hai. Toh Jab Saman Arthat Sampann Swarup Mei Raho Tab Kahenge Vardani Murat.
Slogan : – Yaad Ki Teevra Daudi Lagao Toh Baap Ke Gale Ka Har, Vijayi Manke Ban Jayenge.
Posted: 25 Jul 2013 11:08 PM PDT
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English Murli

Essence: Sweet children, you now have to become pure, living beings (embodied souls). No one at this time is a pure, living being and no one can therefore call himself a mahatma (great soul).
Question: Which children receive the prize of the golden-aged kingdom?
Answer: Those who claim number one in the race of remembrance by following shrimat receive the prize of the kingdom. If you race fast, you have a good name in the register and claim a right to the prize. You children become far-sighted and race far away. You reach your goal (the supreme abode) in a second and come back again. It is in your intellects that you will first go into liberation and then into liberation-in-life. No one else can race like you.
Song: At last the day for which we had been waiting has come!
Essence for dharna:
1. Become far-sighted, know the three worlds and the three aspects of time and race with your intellect. Become liberated from this dirty world and dirty body.
2. Erase the habit of telling lies. Never disobey shrimat thereby doing disservice.
Blessing: May you constantly have the fortune of happiness and make many souls prosperous with the treasures of happiness.
Those who remain constantly happy are said to have the fortune of happiness and they make many souls prosperous through their treasures of happiness. Nowadays, everyone specially needs the treasures of happiness. They have everything else, but they do not have any happiness. All of you have received a mine of happiness. You have various treasures of happiness. So, simply become a master of these treasures and use them for the self and others and you will experience yourself to be prosperous.
Slogan: To transform the wasteful intentions of many souls into elevated intentions is real service.

Hindi Murli

मुरली सार:- ”मीठे बच्चे – अभी तुम्हें पवित्र जीवात्मा बनना है। इस समय कोई पवित्र जीवात्मा नहीं हैं इसलिए अपने को महात्मा भी नहीं कहला सकते।”
प्रश्न:- सतयुगी राजाई का इनाम किन बच्चों को प्राप्त होता है?
उत्तर:- जो श्रीमत पर याद की रेस में नम्बरवन जाते हैं, उन्हें ही राजाई का इनाम मिलता है। तीखी रेस होगी तो रजिस्टर में नाम अच्छा होगा और इनाम के अधिकारी बनेंगे। तुम बच्चे दूरादेशी बन बड़ी दूर की रेस करते हो। एक सेकेण्ड में निशान तक (परमधाम तक) पहुँच वापस लौटकर आते हो। तुम्हारी बुद्धि में है पहले हम मुक्ति में जायेंगे फिर जीवनमुक्ति में आयेंगे। तुम्हारे जैसी रेस और कोई कर नहीं सकता।
गीत:- आख़िर वह दिन आया आज……..
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) दूरादेशी बन तीनों लोकों और तीनों कालों को जान बुद्धि से रेस करनी है। इस छी-छी दुनिया, छी-छी शरीर से मुक्त होना है।
2) झूठ बोलने की आदत को मिटाना है। श्रीमत का उल्लंघन कर डिससर्विस नहीं करनी है।
वरदान:- खुशी के खजाने से अनेक आत्माओं को मालामाल बनाने वाले सदा खुशनसीब भव
खुशनसीब उन्हें कहा जाता जो सदा खुश रहते हैं और खुशी के खजाने द्वारा अनेक आत्माओं को मालामाल बना देते हैं। आजकल हर एक को विशेष खुशी के खजाने की आवश्यकता है, और सब कुछ है लेकिन खुशी नहीं है। आप सबको तो खुशियों की खान मिल गई। खुशियों का वैरायटी खजाना आपके पास है, सिर्फ इस खजाने के मालिक बन जो मिला है वो स्वयं के प्रति और सर्व के प्रति यूज़ करो तो मालामाल अनुभव करेंगे।
स्लोगन:- अन्य आत्माओं के व्यर्थ भाव को श्रेष्ठ भाव में परिवर्तन कर देना ही सच्ची सेवा है।

Hinglish Murli

Murli Saar : – ” Mithe Bacche – Abhi Tumhe Pavitra Jivatma Bannna Hai. Is Samay Koi Pavitra Jivatma Nahi Hai Isliye Apne Ko Mahatma Bhi Nahi Kehla Sakte.”
Prashna : – Satyugi Rajayi Ka Income Kin Baccho Ko Prapt Hota Hai ?
Uttar : – Jho Shrimat Par Yaad Ki Race Mei Numberone Jate Hai, Unhe Hi Rajayi Ka Income Milta Hai. Teekhi Race Hogi Toh Register Mei Naam Acha Hoga Aur Income Ke Adhikari Banenge. Tum Bacche Durandeshi Ban Badi Dur Ki Race Karte Ho. Ek Second Mei Nishan Tak ( Paramdham Tak ) Pahuch Vapas Loutkar Aate Ho. Tumhari Buddhi Mei Hai Pehle Hum Mukti Mei Jayenge Phir Jeevanmukt Mei Aayenge. Tumhare Jaisi Race Aur Koi Kar Nahi Sakta.
Geet : – aakhir Vah Din Aaya Aaj. .. .. .. .
Dharan Ke Liye Mukhya Saar : -
1 ) Durandeshi Ban Teeno Lolo Aur Teeno Kalo Ko Jaan Buddhi Se Race Karni Hai. Is Chi – Chi Dunia, Chi – Chi Sharir Se Mukt Hona Hai.
2 ) Jhooth Bolne Ki Aadat Ko Mitana Hai. Shrimat Ka Ulanghan Kar Dis-service Nahi Karni Hai.
Vardan : – Khushi Ke Khazane Se Anek Atmao Ko Malamal Banane Wale Sada Khushnaseeb Bhav
Khushnaseeb Unhe Kaha Jata Jho Sada Khush Rahte Hai Aur Khushi Ke Khazane Dwara Anek Atmao Ko Malamal Bana Dete Hai. Aajkal Har Ek Ko Vishesh Khushi Ke Khazane Ki Aavasyak Hai, Aur Sab Kuch Hai Lekin Khushi Nahi Hai. Aap Sabko Toh Khushiyo Ki Kan Mil Gai. Khushiyo Ka Variety Khajana Aapke Paas Hai, Sirf Is Khazane Ke Malik Ban Jho Mila Hai Vo Swayam Ke Prati Aur Sarva Ke Prati use Karo Toh Malamal Anubhav Karenge.
Slogan : – Anya Atmao Ke Vyarth Bhaav Ko Shrest Bhaav Mei Parivartan Kar Dena Hi Sacchi Seva Hai.


कर्मों का खाता (दूसरा भाग )

आप स्वभाव वश बारहा किसी का दिल दुखाकर यह नहीं कह सकते -आई एम सोरी .यह व्यवहार परपीड़क

 का धीरे धीरे आपका स्वभाव ही बन जाता ही .हिसाब किताब  बन जाता है इसका भी आपकी आत्मा में .याद

रहे कर्मों का विधान एक प्रतिध्वनि की तरह है जब आप किसी की कमजोरियों को देखके उनका बखान करते

हैं (भले अपने आप को बहुत अक्ल मंद समझते हों ,हो सकता है हों भी )यह व्यर्थ यह कचरा ये रागरंग निंदा

रस की जुगाली आपके पास लौटके ज़रूर आती है . कल कोई और आपकी इससे भी बड़ी अवमानना करेगा

सुनिश्चित मानिए इसे ,यही तो कर्मों का विधान कहता है .

ELEVATED ACTIONS 

बाप कहते हैं मैं अब तुम्हें अपने निज आत्म स्वरूप में बने रहना टिके रहना समझाता हूँ .तुम ऐसा होने पर एक निरपेक्ष प्रेक्षक (दृष्टा )बन जाते हो तुम्हारे पवित्रता के आत्म सम्मान के मूल संस्कार प्रगट होने लगते हैं कार्य कारण सम्बन्ध को अब तुम साक्षी भाव से देखने लगते हो .ऐसा होने पर तुम विकार रुपी बिच्छुओं को देख समझ उनके डंक निकालने लगते हो डंक निकाल  उनसे खेलने भी लगते हो कोई कर्मेंद्रीय  अब आपको बहका बरगला नहीं सकती .माया का सूक्ष्म रूप भी अब आपको छू नहीं सकता है .अब तुम खुद को  औरों को सही रूप में देख सकते हो .लेकिन याद रहे अपना खुद का हाकिम बनना है किसी और को जज़ नहीं करना है .

बाप कहते हैं मीठे बच्चे कुछ भी करने से पहले दृष्टा बन जाओ पहले तौलो स्थिति के बारे में सोचो उसका आकलन करो  फिर कुछ  करो .यह कार्य तुम्हारा श्री मत के अनुरूप होगा क्योंकि तुमने विचार लिया है श्री मत क्या कहती है इस बाबत .अब अपनी अंत :चेतना (अन्तश्चेतना ,अंत :करण)की आवाज़ सुनना तुम्हारी आदत बन जाती है .आत्मा को कर्म करते हुए भी अब अपना बुनियादी शान्ति आनंद और प्रेम स्वरूप याद रहता है .

तुम्हारे कर्मों की गति ऐसा होने पर सहज ही रूपांतरित हो जाती हैऊर्ध्वगामी बन जाती है   .एक तरफ तुम्हारा प्रकाश स्वरूप(पवित्र ज्योति बिंदु स्वरूप ) जागृत हो जाता है दूसरी तरफ अपने पूर्व जन्मों के कर्मों के बोझ से भी तुम अब हलके हो जाते हो .

इसीको कहते हैं जीवन मुक्ति कर्म करते हुए कर्म की मार से बचे रहना .श्रेश्ठाचारी बनना .कर्म का फलसफा समझ आ जाये तो मेरे बच्चों तुम हर प्रकार के भय ,प्रायश्चित और सज़ा से बच जाओ .जब कुछ हो जाता है तो लोग कहते हैं ईश्वर की मर्जी .लेकिन तुम ऐसा नहीं कहोगे क्योंकि तुम जानते हो यह ड्रामा में था ड्रामा की नूंध है गुंथा हुआ था यह कर्म भोग नाटक में .तुम्हारे कर्मों के खाते में दर्ज़ था .सब अपने कर्मों के अनुसार ही सुख दुःख भोगते हैं ."मैं "कभी किसी को दुःख नहीं देता हूँ .

मैं तुम्हें मार्ग बतलाता हूँ पुरुषार्थ के बारे में  .प्रालब्ध बतलाता हूँ कर्मों का .मेरा काम ही हर पतित को पावन बनाना है .जो कुछ भी अच्छा बुरा तुम्हारे साथ हो चुका है वह उस अनादी नाटक में था जो चलता ही रहता है अनवरत .यहाँ कोई अल्पविराम (ब्रेक )लेने की बात ही नहीं करता .


ॐ शान्ति 

(ज़ारी )



  

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